For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो माँ विहीना / लघुकथा / कान्ता राॅय

बचपन में ही माँ का स्वर्गवास हो जाना और पिता का दुसरी शादी ना करने का निर्णय उस नन्हीं सी जान का अपने मामा के यहाँ पालन - पोषण का कारण बनी ।

मामी के सीने पर मूंग दलने के समान होने के बावजूद वो पल - पल बढती हुई ,उससे पिंड छुडाने के आस अब जाकर पूरी हो चुकी थी ।

शहर में पिता के पास पहुँचा दी गई ।
पिता को क्या मालूम बेटियाँ कैसे पाली जाती है !
लेकिन बेटी को मालूम था कि बेटियाँ माँ ,बहन और बेटी कैसे बनती है इसलिए दिन सुहाने से हो चले थे पिता और पुत्री दोनों के ।

खुशियाँ दो दिन की ही मेहमान ठहरी । खुशियों के पैरों में चक्कर होते है इसलिए वो टिक कर कहीं नहीं रहती है ।

बिना माँ की जवान होती बेटी पर अचानक रिश्तेदार से लेकर आस - पडोस वाले तक कोई बाप तो कोई माँ , भाई की भूमिका के आड़ में उस पर नजर रखने लगे ।

पिता को अपनी बेटी से अधिक दुसरे बेटी वालों के तजुर्बे पर अधिक भरोसा था ।

माँ की ममता तलाशती हुई उस माँ विहीना को सिर्फ शक , ताने और सौ प्रतिबंध मिले ।
वो मासूम आज भी पिता के अंगुलियों के सहारे उनके हथेलियों में .... संवेदनहीन आँचलो के नीचे माँ को तलाशती फिरती चलती है ।



मौलिक और अप्रकाशित

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 12:01pm

आदरणीया कांता जी, माँ विहीना का बहुत मार्मिक चित्रण हुआ है. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर. सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on August 9, 2015 at 8:29pm

आदरणीया कान्ता जी,एक मॉ के बिना बच्ची का बचपन किन पथरीली और कंटीली पगडंडियों से गुजरता है, बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है!हार्दिक बधाई!

Comment by pratibha pande on August 9, 2015 at 6:49pm

आपकी तीखी लेखनी से कुछ अलग हट के .माँ विहीना का दर्द बहुत मार्मिक है आ० कांता जी ,बधाई , और एक क्षमा निवेदन भी कि लाइव गोष्ठी में कुछ सिस्टम की तकनीकी खामियों की वजह आपसे मुखातिब नहीं हो पाई थी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service