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सबसे खूबसूरत भूल (गज़ल)l

बाकी नहीं मंजर कोई आंखों में सिर्फ धूल है,
इस हाल में घर से निकलना बेसबब,फिज़ूल है,
मुझे दूर ही रख्खे तेरी चौखट से मेरी गैरतें,
मेरा भी इक ज़मीर है,मेरे भी कुछ उसूल हैं,
खैरात में मुझको नहीं तेरी वफायें चाहिये,
तू खुशी से दे तो तेरी नफरतें कुबूल हैं,
तुझे भूलकर भी भूलना मुमकिन नहीं है अब,
तू मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन भूल है ll
-Er Anand Sagar Pandey

मौलिक एवं अप्रकाशित l

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Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 10:22am
बहुत ही सुन्दर भावों वाली रचना हुई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2015 at 7:04am

आदरणीय  आनन्द भाई , आपकी रचना गज़ल होने से रह गई है , बातें अच्छी कही है । हार्दिक बधाई प्रयास के लिये । गज़ल कहने के लिए कुछ गम्भीर अध्ययन की ज़रूरत है , यहाँ पाठ उपलब्ध है , पाठ जरूर कीजियेगा । सादर

Comment by Er Anand Sagar Pandey on July 21, 2015 at 1:07pm
आपकी टिप्पडी एवं सुझाव हेतु तह-ए-दिल से आभार सम्मानित मिथिलेश जी l

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 11:36am

आदरणीय आनंद सागर पांडे जी, आपके द्वारा भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की गई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
साथ ही इस प्रस्तुति के मद्देनज़र अपार संभावनायें भी स्पष्ट है अतः इस रचना को ग़ज़ल बनाने के लिए और आगे भी मुकम्मल ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें को एक बार पढ़ जाईयें बहुत लाभकारी होगा.

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