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क्या काफिया,रदीफ़ क्या,अशआर उसके आगे,
क्या शेर,क्या मक्ता,गज़ल बेकार उसके आगे l

क्या आसमान,जुगनू,क्या चांद,क्या सितारे,
मुमकिन भला है किसका दीदार उसके आगे l

क्या गुल,कि क्या गुलिस्तां,कि क्या भला शबनम,
पतझड़ लगी है मुझको बहार उसके आगे l

ये तो अच्छा है कि वो पर्दे में रहती है,
वरना चांद भी हो जाये शर्मशार उसके आगे l

जब भीनिगाहें शोख ले गुजरी वो गलियों से,
सारा मुहल्ला पड़ गया बीमार उसके आगे l

हम भी इसी हालात के मारे हुए हैं दोस्तों,
दिल रहा है हरदफ़ा लाचार उसके आगे l

वो हकीम मुझपे आखिर क्यूं तरस खाता नहीं,
जबकि रहा हूं उम्र भर बीमार उसके आगे l

उसको हाल-ए-दिल सुनाना चाहता हूं "सागर",
पर सोचता हूं कैसे हो इजहार उसके आगे ll

मौलिक एवं अप्रकाशित l
-इंजी.आनन्द सागर पान्डेय

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Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 12, 2015 at 11:59am
सादर आभार आदरणीय डा.आशुतोष जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 12, 2015 at 11:58am
सादर आभार आदरणीय तनुजा जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 12, 2015 at 11:57am
सादर आभार आदरणीय गिरिराज जी l
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 11, 2015 at 6:07pm

ये तो अच्छा है कि वो पर्दे में रहती है,
वरना चांद भी हो जाये शर्मशार उसके आगे l...आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए थे दिल बधाई सादर 

Comment by Tanuja Upreti on August 11, 2015 at 1:08pm

आह वाह आनंद जी बहुत सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकार करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2015 at 10:44am

आदरणीय आनन्द सागर भाई , ग़ज़ल के ऊपर बहर लिख दिये होते तो कुछ कहने मे आसानी होती । बहर हाल ग़ज़ल के प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 10:41am
सादर आभार आदरणीय हर्ष महाजन जी l
Comment by Harash Mahajan on August 11, 2015 at 8:41am
आ0 आनंद जी बहुत सूंदर अहसास हैं आपकी इस कृति में । बधाई स्वीकार करें । साभार !!!
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 6:29am
सादर आभार आदरणीय मनन कुमार जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 6:28am
सादर आभार मनोज कुमार जी l

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