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मिठाई ( लघुकथा )

नास्तिक बाबूजी को देर रात ,चुपके से पूजाघर से निकलते देख मानस की उत्सुकता जाग गई,और पुलिसिया मन शंकित हो उठा।वो चुपके से उनके पीछे चल पड़ा।

उन्होंने हाथ में पकड़ा लड्डू माँ की ओर बढ़ा दिया
" लो खा लो "
" ये कहाँ से लाए आप ?"
"पूजा घर से "उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।
उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।


( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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Comment by pratibha pande on July 15, 2015 at 10:27am

बहुत  बढ़िया  कथा ,  बधाई आ० ज्योत्स्ना जी 

Comment by jyotsna Kapil on July 14, 2015 at 10:04pm
सर्वप्रथम आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करती हूँ आ.मिथिलेश वामनकर जी कथा को समय देने एवम सराहने के लिए।आपकी शुभेच्छा मेरा मार्ग अवश्य प्रशस्त करेगी।
Comment by jyotsna Kapil on July 14, 2015 at 9:52pm
आपका कहना बिलकुल सत्य है आ. विनय सिंह जी।परन्तु कई बार ऐसा भी हो जाता की की किसी के लिए बुरा न चाहते हुए भी असावधानी वश हम बुरा कर बैठते हैं।बस उससे बचने का प्रयास ही अगर कर पाए तो कई समस्याएं दूर हो जाएंगी।सादर नमन व आभार।
Comment by jyotsna Kapil on July 14, 2015 at 9:47pm
कथा को पसन्द करने एवम सराहना करने हेतु हृदय से आभारी हूँ आ. प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी ।आप वरिष्ठ लोगों के मध्य बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 1:39pm

बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीया ज्योत्स्ना जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by विनय कुमार on July 14, 2015 at 12:50pm

बढ़िया लघुकथा आदरणीया ज्योत्स्ना जी , माँ बाप के लिए कहाँ सोचते हैं कुछ लोग आजकल.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 14, 2015 at 11:43am

घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।

सुन्दर कथा , सादर बधाई 

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