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आ0 सौरभ सरजी, आपका हार्दिक आभार. सादर
भाई केवल प्रसादजी, आपकी कविता से निस्सृत आक्रोश सदिह आक्रोश है इस क्रोध का समाज में व्यापना आवश्यक है. अतः स्वागत है.
परन्तु कविता की भाषा आक्रोश और उसके तेवर को सँभाल नहीम् पाती. सहज शब्दों में वैचारिक प्रवाह को सस्वर करना था.
आपकी प्रस्तुति के भाव वस्तुतः सच्चे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें भाईजी.
आ० केवल सर आपके विचार इतने सघन हो गये है की मै समझने में असमर्थ महसूस कर रहा हूँ! मेरी कमी है!
आ0 महिर्शि भाई जी प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर
आ0 गोपाल भाई जी प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर
आ0 समर भाई जी प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर
आ0 कांता जी प्रणाम! आपका बहुत-बहुत आभार, सादर
चॉदनी असहाय ...नित्य राख सी उड़कर
स्याह मन की तख्ती पर लिखना चाहती
आत्मा का दर्द,,,,,बहुत बहुत बधाई आ. Kewal Prasad जी |
बड़ा ही बौखलाया आक्रोश है जो आजकल आपकी कविता में देखने को मिल रहा है . आ० केवल जी
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