For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

212   212   212   212

आपकी  थी  हमें  भी  बहुत  कामना

आज   संयोग   से  हो गया सामना

 

आँख से आँख अपनी मिली इस तरह

रस्म भर  ही रहा  हाथ  का थामना

 

मयकशीं  जो  करूं तो  नशा यूँ चढ़े

और  आये  कभी  हाथ में जाम ना

 

इश्क आँखों  में जब से लगा नाचने

हो  गयी  पूर्ण   सारी  मनोकामना

 

हाथ में  हाथ  ले  बात की थी कभी

याद है वह  सुहानी तुम्हें  शाम ना

 

इश्क की मय हुयी है  मयस्सर जिसे

वह  नशेड़ी  रहा  आदमी  आम ना

 

जब तलक हम जहाँ से नही जायेंगे

तब तलक  है कहाँ  कोई आराम ना 

 

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित )

 

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 4:29pm

आ० अनुज

आपकी इस्लाह बहुत जरूरी है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 4:28pm

सरना जी

आपका आभार . बात लय  के अधूरे पन की नहीं बल्कि काफिये के तंगी  की है  आमना, सामना, थामना. मनोकामना के बाद काफिया ही नहीं है सो शब्द जोड़कर काफिया बनाने  से लय  कुछ जरूर बाधित हुयी  गजल में काफिये का ध्यान रखना पडेगा .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 4:23pm

आ० वीनस जी

आपको ही पढ़कर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 4:22pm

आ० अनुज

आपका मशवरा बहुत सही है . मैं एडिट करता हूँ . सादर .

Comment by Samar kabeer on June 8, 2015 at 2:57pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,इस सुन्दर और शानदार ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by narendrasinh chauhan on June 8, 2015 at 12:03pm

जब तलक हम जहाँ से नही जायेंगे

तब तलक  है कहाँ  कोई आराम ना, बहोत खूब ,सर , वैसे भी किस जीव की तृष्णा कब मिटती


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 10:32am

आदरणीय बड़े भाई , क्या बात है , अब सब ठीक है ! पुनः बधाई आपको ।

Comment by Sushil Sarna on June 6, 2015 at 2:27pm

आँख से आँख अपनी मिली इस तरह
रस्म भर ही रहा हाथ का थामना

क्या बात है सर क्या मिसरे उठाये हैं … गहन भावों से युक्त इस ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ गोपाल भाई साहिब। पता नहीं कहीं कहीं गेयता में कमी लगी जैसे ''और आये कभी हाथ में जाम ना''(कुछ अधूरी सी लय ) कृपया अन्यथा न लेवें ये मेरा दृष्टिकोण है हो सकता है मैं गलत होऊं। अनुज समझ के क्षमा करना। उत्तम भावों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by वीनस केसरी on June 6, 2015 at 2:09pm

आँख से आँख अपनी मिली इस तरह

रस्म भर  ही रहा  हाथ  का थामना

 

इस शेर ने तो लूट लिया ... वाह वा
एक छोटी सी कमी की ओर गिरिराज जी ने इंगित कर ही दिया है /.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2015 at 1:57pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , क्या खूब गज़ल कही है , लाजवाब ! दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । कुछेक अशआर  मे तकाबुले रदीफ दोष दिख रहा है -- 3,4,5,7, आप सक्षम हैं , मुझे विश्वास है आप सुधार लेंगे ॥ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service