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मान्यता(लघु कथा,मनन कु. सिंह)

पाठ्य पुस्तक में अपनी कविता देखकर कविता बहुत खुश हुई।पर यह क्या,कवयित्री की जगह तो नाम किसी कामिनी देवी का था।उसने कामिनी देवी का पता नोट किया,पता करने पर पता चला कि कामिनी एक बहुत ही लब्ध-प्रतिष्ठ हिंदी साहित्यकार के खानदान से है,जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।कविता कामिनी से मिलने पहुँच गयी,बोली-
'तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ।तूने मेरी कविता अपने नाम से पाठ्य क्रम में शामिल करा लिया।'
- 'ऐसी उम्मीद तो तुमसे मुझे नहीं थी,तू मेरी कविता को अपनी कह रही।'
-'अच्छा,चोरी और सीनाजोरी?'
-'होश की बातें करो,मैं तेरे मुँह नहीं लगना चाहती,अपनी साहित्यिक विरासत का मुझे तो खयाल रखना है न?
-'मेरी यह कविता दस वर्ष पहले हैदराबाद के प्रतिष्ठित हिंदी अखबार में छपी थी',कविता गुर्रायी।
-'ज्यादा तेवर न दिखा,हो सकता है तूने मेरी कविता तब चुरा ली हो',कामिनी रोबीले अंदाज में बोली।
कविता हतप्रभ थी।उसकी मान्यता कि अप्रकाशित रचनाओं की ही चोरी होती है अब बदल चुकी थी।

.
'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2015 at 10:50pm
जी गोपाल भाईजी,आभार आपका ;और प्रयास रहेगा मेरा,सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 3, 2015 at 10:19pm

PLAGIARISM साहित्यिक चोरी जैसे विषय पर आपने बेहतरीन प्रयास किया . आप मेरी नजर में धन्यवाद   के पात्र हैं . संगठन में कुछ और कसावट हो सकती थी.  सादर .

Comment by Manan Kumar singh on June 3, 2015 at 8:28pm
आपका आभार आ. महर्षि जी।वस्तुतः रचनाओं की चोरी का जबरदस्त सिलसिला चलता है।
Comment by maharshi tripathi on June 3, 2015 at 7:21pm

उसकी मान्यता कि अप्रकाशित रचनाओं की ही चोरी होती है अब बदल चुकी थी।,,,,वाह ,,बहुत खूब आ. Manan Kumar singh जी |

 

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"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
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