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-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :-

-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :-  (संसोधित)

खींच अहं के मग से डग प्रभु,

रख लें अपने चरणों में ||

है परम कांति अरु चरम शांति जो,

और किसी ना शरणों में |

सजा हुआ मद की बेड़ी मे,

जड़ा हुआ हूँ कहीं सिखा पर,

तोड़ एकांकी अहं का आसन,

मिला लें पद रज-कणों में |

खींच अहं के मग से डग प्रभु,

रख लें अपने चरणों में ||

यह राह नहीं है सीधा-सादा ;

मैं निकल पड़ा जिसपर |

रसहीन बचा बाकी जीवन,

अब गर्व करूँ किसपर |

अवसर पश्चाताप का ना तो,

फिर कहाँ मुक्ति मरणों में |

बस मुक्ति प्रभो के चरणों मे,

भक्ति भाव के वरणों में |

खींच अहं के मग से डग प्रभु,

रख लें अपने चरणों में ||

*****************

-शरद सिंह "विनोद" -

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on May 26, 2015 at 10:46pm
सुन्दर प्रार्थना आदरणीय शरद सिंह जी. बधाई आपको.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 1:50pm

सुन्दर भक्तिमय गीत पर सार्थक प्रयास हुआ है आदरणीय शरद सिंह जी बधाई स्वीकार करें.

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