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" मैंने तो बिना पैसे दिए ही शॉपिंग कर ली | वो बाजार में एक छोटी सी किराने की दुकान है न , आज वहां चली गयी थी | सामान लेने के बाद उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया, बोला कि वो आपको जानता है और इसलिए पैसे नहीं लेगा "|
वो सोच में पड़ गया , अपने गाँव का छोटी जात का दुकानदार , जिसकी बेटी की शादी में १०१ रुपये देकर उसने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी |
आज वो अपने आप को बहुत छोटा महसूस कर रहा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 12:12pm

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय विनय कुमार जी ....... छोटे और बड़े का वास्तविक अंतर समझाती खुबसूरत  कथा!

सादर बधाई स्वीकार करे,

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2015 at 11:49am

अभिमान को चरित्र सदैव पटकनी देता है . सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

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