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गाँव में एक नयी बीमारी का प्रकोप फैला और लगातार कुछ बच्चों की मौत हो गयी । एक तरफ जहाँ लोग भयभीत थे वहीँ दूसरी तरफ ठाकुर के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी ।
अगले दिन उसके कोठी के पास अपनी कोठरी में रहने वाली अकेली विधवा को लोगों के हुजूम ने डायन कह कर गाँव से बाहर खदेड़ दिया ।
बच्चों की मौत का सिलसिला तो नहीं रुका लेकिन वो ज़मीन अब ठाकुर की थी ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 28, 2015 at 6:08pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी.

Comment by विनय कुमार on May 28, 2015 at 6:07pm

जी , बिलकुल सही कह रहे हैं आप आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी | ठाकुर तो सिर्फ प्रतीक है ऐसे लोगों का | बहुत बहुत आभार..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 28, 2015 at 10:37am

वाह! आदरणीय विनय जी. अक्सर प्रॉपर्टी के लिए यह हथकंडे अपनाना आम बात रही है. लघुकथा पर आपको बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 10:14am

ये ठाकुर अब किसी जाति विशेष के प्रतिनिधि नहीं रह गये हैं. कल के शोषित किन्तु आज के नव-धनाढ्य भी उसी अश्लीलता से शक्ति-सामर्थ्य और सामंतवादी प्रदर्शन में लगे हैं.

प्रस्तुत लघुकथा के लिए शुभकामनाएँ.

Comment by विनय कुमार on May 27, 2015 at 2:57pm

बिलकुल सही कहा आपने आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , बहुत बहुत आभार..

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 2:20pm

आदरणीय विनय जी,

जमीन हथियाने वाले गांव ही नहीं शहरों में भी होते है. परिस्थियों के अनुसार तरीका बदल जाता है. सुन्दर कथा. 

सादर.

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 10:32pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया कान्ता रॉय जी । बिलकुल सच कह रही हैं आप , सादर आभार..

Comment by विनय कुमार on May 24, 2015 at 10:30pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी । आप जैसे सिद्धहस्त लघुकथाकार से प्रसंसा मिलना बहुत बड़ी बात है । आगे भी मार्गदर्शन करते रहिये.

Comment by kanta roy on May 24, 2015 at 7:21pm
चालें चलना सदा से ठाकूरों जमींदारों की परम्परा रही है । गरीबों को भूखमरी और अंधविश्वासों की कुऐं में ढकेलने वाली पूंजीपति आज भी सत्ता में रसूखदार बन कर बैठी है और हमने आजतक उनकी दास स्वीकार किये बैठे है । बेहतरीन रचना आदरणीय विनय कुमार सर जी
Comment by Ravi Prabhakar on May 24, 2015 at 4:52pm

चन्‍द पंक्‍ितयों में आपने ठाकुर की कुत्‍िसत मानसिकता की कलई खोल दी । अत्‍यंत प्रभावशाली व सारगर्भित लघुकथा हेतु आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनय भाई जी । लघुकथा विधा पर आपकी पकड़ बहुत प्रसन्‍न करती है । सादर

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