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संसार की समस्त सम्भावनाओं का क्षेत्र......हरि प्रकाश दुबे

क्यों

घबराते हो

परिवर्तन से ?

परिवर्तन तो होगा  

होता रहा है, होगा बार- बार

किसी के लिए अच्छा भी हो सकता है  

किसी के लिए अवांछनीय भी हो सकता है 

पर सृष्टी का नियम है, बदल सकते हो क्या ?

पर एक बात जान लो, परिवर्तन से ही इंसान लड़ता है

आगे बढता है ,परिवर्तन से ही इंसान सड़ जाने से बचता है !!

क्यों

घबराते हो

समस्याओं से ?

समस्यायें तो आयेंगी

आती रही है, आयेंगी बार – बार

जीवन ऐसे ही चलता है ,चलता रहेगा

कदम –कदम पर छलिया, तुमको छलता रहेगा

कितनी ही चालाकी दिखाओ, बच सकते हो क्या ?

पर याद करो ये सब तुम पहले भी झेल चुके हो कई बार

डूबे हो कभी उबरे हो, पर हर बार नए अंदाज़ के साथ उभरे हो !!   

क्यों

घबराते हो

रिक्तताओं से ?

रिक्ततायें तो आयेंगी

आती रही है,  आयेंगी बार – बार

समय- समय पर, तुम शून्य हो जाओगे

समझना चाहोगे, पर कुछ भी समझ नहीं पाओगे

निर्वात में फँसाये जाओगे, निकल  सकते हो क्या ?

पर यही निर्वात, संसार की समस्त सम्भावनाओं का क्षेत्र है

इसी अवस्था को अपना वरदान बना, अपने जीवन को महान बना !!   

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

Views: 746

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:10am

आदरणीय मिथिलेश भाई बहुत - बहुत आभार आपका !

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:07am

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  सादर धन्यवाद ! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 25, 2015 at 6:47am
परिवर्तन, समस्याओं, शून्यता पर सुन्दर कविता , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बधाई , सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 1:25am

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी पिरामिड आकार या शिखर ध्वज आकार की इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 11:01pm

महान बनने की सीख देती आपकी कविता पार आपको बधाई ..आ. हरिप्रकाश  जी |

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