For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२........डराओ मत

१२२२—१२२२—१२२२

उमंगों के चरागों को बुझाओ मत

उजाले को अँधेरों से डराओ मत

 

न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का            तगाफ़ुल= उपेक्षा

परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत

 

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत

 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत

 

सजाओ आइने दीवार में लेकिन

हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत

 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत

 

यहाँ हर आँख में नमकीन आँसू हैं

किसी को ज़ख्म दिल के तुम दिखाओ मत

 

असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव

शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत                क़ुमक़ुमा = बल्ब\लट्टू 

 

लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं

ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 1028

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 28, 2015 at 1:00pm

सताओ मत सताओ मत सताओ मत .. क्या आवृति है !

ग़ज़ले कहना एक बात. अच्छी ग़ज़लें कहना एक बात. लगातार अच्छी बातें करना बड़ी बात. आप बड़ी बातें कर रहे हैं, आदरणीय ख़ुर्शीद भाईजी.
बहुत खूब ! बहुत खूब ! बहुत खूब !

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:57pm

आदरणीय गिरिराज सर , आदरणीय मिथिलेश जी , आपकी मुहब्बत तथा हौसलाअफजाई ही अशहार में रंग भरती है |

अज़ीज़ों की मुहब्बत है ग़ज़ल का हुस्न 

इसे अपनी कहो, मेरी बताओ मत 

सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:49pm

आदरणीय गुमनाम सर , आदरणीय विजयशंकर सर,  आ. अतुल कुशवाहा जी ,आप सभी का दिल की गहराइयों से आभार |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:45pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आदरणीय हरिप्रकाश सर , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार |सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2015 at 11:56am

आ० खुर्शीद भाई मैं भी मिथिलेश भाई का हमराह हूँ , हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:53am

नए शायर ज़रा सहमें  हुए है हम 

ग़ज़ल ऐसी गज़ब कह यूं डराओं मत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:28am

वाह वाह वाह 

खुर्शीद सर अब क्या जां निकाल के मानोगे आप. 

क्या ग़ज़ल हुई है ! क्या अशआर हुए है ! एक से बढ़कर एक........ खुबसूरत मतला......

कंकर तगाफ़ुल का और परिंदे हसरतों के

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे और कद मेरा घटाओ मत

सजाओ आइने और हक़ीक़त से निगाहें चुराओ मत

आँख में नमकीन आँसू और ज़ख्म दिल के

ये मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी जैसा रब्त है बस दिल निकाल के पेश कर दूं 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत.... वाह 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत.... क्या बात है! उम्दा.

असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव

शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत.... बेहतरीन शेर 

लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं

ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत .... मकते ने क्या व्यंग्य किया है ... बेहतरीन.

ग़ज़ल के एक दो अशआर तो ऐसे है कि मेरी मुकम्मल गज़लें परेशां है क्योकि जो आप कह रहे है वही उन ग़ज़लों के शेर भी कह रहे है मगर इतने उम्दा नहीं है. इसे पढने के बाद उन्हें खारिज़ मान रहा हूँ. इस ग़ज़ल पर बधाई क्या दूं बस नमन 

Comment by somesh kumar on January 27, 2015 at 11:14pm

इस गज़ल को किस सन्दर्भ से देखूं |दो तीन दिन पहले यशोदा बेन की एक शिकायत पढ़ी थी इसे उसी राजनैतिक ऊँचे कद के पति और अपने अधिकारों के लिए सवाल पूछती पत्नी के लिहाज़ से देखता हूँ |उसकी विरह और त्याग को सोचता हूँ तो ये गज़ल वहाँ फिट होती लगती है |बाकी आम इन्सान पे भी बहुत से से'र लागु होते हैं |इस कामयाब गज़ल पर बहुत बधाई |

Comment by atul kushwah on January 27, 2015 at 10:24pm

Wah khurshhed sahab..bahut khoob

Comment by ajay sharma on January 27, 2015 at 10:08pm

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत........sir ji kya kahte hai .....wah wah

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service