For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूर्यास्त - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की। उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है। हमेशा नाराज रहते है, रोज ड्राइंग रूम में सोते है। पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है।”


कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई। कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था।

क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका था।

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 29, 2015 at 3:20am

आदरणीय आशुतोष जी आपने लघुकथा के प्रयास को मान दिया आपका हार्दिक आभार 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2015 at 12:11pm

आदरणीय मिथिलेश जी तरही मुशायरे की आपकी ग़ज़ल से आज का साहित्यिक सफ़र आपको , आपकी रचनाओं को पढने में ही बीतेगा इस शानदार लघु कथा से आगाज़ कर रहा हूँ .इस रचना के माध्यम से आपने सामजिक विकृति को ख़ूबसूरती से उकेरा है ..बधाई तो बंटी है ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:45pm
आदरणीया वंदना जी इस सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:44pm
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी आपकी उत्साहवर्धक सराहना के लिए आभार हार्दिक धन्यवाद।
Comment by vandana on December 31, 2014 at 7:53am

सफलतापूर्वक पाठक तक पहुँचती लघुकथा आदरणीय बहुत २ बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 5:13am
आदरणीय मिथिलेश जी , आपकी कथा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें दोनों ही पात्र स्वैच्छिक दोषी हैं। कथा रुग्ण व्यवस्था के एक विकृत रूप पर प्रहार करने में सफल है। सूर्यास्त हुआ , उस दिन का जिसका सूर्योदय हुआ ही नहीं।
बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 11:53pm

आदरणीय  Hari Prakash Dubey जी आपका बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद... इस प्रयास की सराहना के लिए.

Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:00pm

 बहुत ही सटीक ,सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश  जी आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 9:02pm
आदरणीय गिरिराज सर ये मेरा पहला प्रयास है इस विधा में। आपकी टिप्पणी सदैव मेरे लिए महत्त्व रखती है। आपका आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 8:43pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , विधा- लघुकथा मेरे लिये अपरिचित है , लेकिन जो बातें आपने कही है वो बहुत सटीक , आज के कारपोरेट दुनिया की कड़वी सच्चाई  है । बढ़िया बात ! बहुत बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service