For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारे दर्द को दुनिया

हमारे दर्द को दुनियाँ तमाशो में न गा जाये

बजा ताली सभी झूमें हमारा दर्द भा जाये

न आये है किनारे पर अभी ठहरा समुन्‍दर है।

बड़ी खामोश लहरे हैं कहीं तूफाँ न आ जाये।।

सहेगें जुल्‍म अब कितना बड़ा जालिम हुआ हाकिम।

पड़ी थी लाश सड़को पे कफन वो बेच खा जाये।।

सभालो अब वतन अपना तबाही का दिखे मंजर

घरों में आज खुशियाँ है कहीं मातम न छा जाये

जला कर आस का दीपक न जाओ छोड़ कर हमको '

कुचलने का हमारा सिर न दुश्‍मन मौका पा जाये

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 6:55pm

सभालो अब वतन अपना तबाही का दिखे मंजर

घरों में आज खुशियाँ है कहीं मातम न छा जाये

सुन्दर पंक्तियाँ अच्छे भाव के साथ!

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:49pm

हम आपके उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन्‍ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्‍वीकार करें आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 10, 2014 at 12:09pm
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय अखंड गहमरी ' जी , बहुत बहुत बधाई .
Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:02pm

हम आपके उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन्‍ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्‍वीकार करें आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:02pm

हम आपके उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन्‍ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्‍वीकार करें आदरणीय हरि‍वल्‍लभ्‍ज्ञ शर्मा जी

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:01pm

हम आपके उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन्‍ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्‍वीकार करें आदरणीया कल्‍पना रामानी जी 

Comment by Akhand Gahmari on September 10, 2014 at 12:01pm

हम आपके उत्‍सावर्धन एवं मार्गदर्शन्‍ा के सदैव आकांक्षी है नमन स्‍वीकार करें आदरणीय डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:38pm
अखंड भाई आप तो चौका रहें है आजकल।। आप इसी गति से बढ़ते रहे।। शुभ शुभ
Comment by harivallabh sharma on September 8, 2014 at 9:21pm

अति सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय गहमरी साहब, 

सहेगें जुल्‍म अब कितना बड़ा जालिम हुआ हाकिम।

पड़ी थी लाश सड़को पे कफन वो बेच खा जाये।।...हकीक़त बयाँ करते अशआर ...लाजबाब...बधाई आपको.

Comment by कल्पना रामानी on September 8, 2014 at 9:14pm

आदरणीय गहमरी जी, बहुत सुंदर गजल कही है, मन से बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"यह ग़ज़ल विवशता के भाव से आरंभ होकर आशा, व्यंग्य, क्षोभ और अंत में गहन निराशा तक की यात्रा समाज में…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी आदरणीय सम्मानित तिलक राज जी आपकी बात से मैं तो सहमत हूँ पर आपका मंच ही उसके विपरीत है 100 वें…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इसी विश्व के महान मंच के महान से भी महान सदस्य 100 वें आयोजन में वही सब शब्द प्रयोग करते नज़र आ…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपको यह कहने की आवश्यकता क् पड़ी कि ''इस मंच पर मौजूद सभी…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service