For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अगम है प्रेम पारावार फिर भी  प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I

विकल मन में जलधि के ज्वार  फूटे

तार      संयम       अनेको     बार    टूटे

प्राण     आकंठ      होकर       थरथराये

नेह    के   बंधन   सजीले   थे   न    छूटे

प्यास  की  वासना  उद्दाम ऐसी  नयन  सागर सहेजे आ गया हूँ I

 

नयन   ने    काव्य  करुणा  के   रचे  हैं

कौन  से    पाठ्यक्रम    इससे    बचे   हैं

किसी   कवि   ने   इन्हें जब गुनगुनाया

लाज     ने    तोड़      डाले    सींकचे    हैं

गीत    संसार  को ऐसे  न भाते   तरह  जैसे  कि मै सरसा गया हूँ I

न     जाने      कौन     सा उन्माद है यह

चरम    है    और      अनहद   नाद है   यह

रूप   में       रमना    रमकर   राम    होना I

प्रकृति  का  शास्वात   रस्वाद  है    यह       

चाह थी नील- नभ में श्याम हो  लूँ राह मे अभ्र से टकरा  गया हूँ I

अगम है  प्रेम पारावार  फिर  भी  प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I

 

 

 

(मू ल व्  अप्रकाशित )

Views: 858

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 9:53am

मन को छू जाते भावों को बहुत सुंदर शब्द मिले. बहुत -२ बधाई आदरणीय डा.गोपाल जी

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 8:54pm

//चाह थी नील- नभ में श्याम हो  लूँ राह मे अभ्र से टकरा  गया हूँ I

अगम है  प्रेम पारावार  फिर  भी  प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I//

बहुत ही सुन्दर भाव हैं आपके गीत के... शब्द  लय के संग कानों में गूंज रहे हैं। हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:12pm

सविता जी

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 5:12pm

आदरणीय सौरभ जी

आपके सुझाव का ह्रदय से स्वागत करता हूँ शब्द रसवाद  ही था टंकण त्रुटि के कारण रस्वाद हो गया था i  आभार आदरणीय i

Comment by savitamishra on August 11, 2014 at 3:36pm

बहुत ही सुन्दर _/\_


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 2:34pm

अनेकों शब्द का थोथापन जान-समझ चुके लोगों के लिए यह शब्द हर स्तर पर त्याज्य है, आदरणीय. कविता में रसवाद न हो कर रस्वाद  है, जो मुझे रसास्वादन का अप्रभंश लगा.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 11:25am

कल्पना जी

आपने पसंद किया आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 11:11am

आदरणीय विजय जी

आभार प्रकट करता हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 11, 2014 at 11:09am

आदरणीय सौरभ जी

मेरे शोध गुरु डा ० रामेन्द्र पाण्डेय जी ने आज से तीस वर्ष पूर्व मुझे सिखाया था कि अनेक स्वयं बहुबचन  है तो फिर अनेको क्यों i तबसे मै अनेको शब्दों का प्रयोग नहीं करता और मेरे लेखो में आपने देखा भी होगा i पर कविता मे मै समझता था शायद यह स्वीकार्य हो और जहाँ मैंने प्रयोग  किया है वहां इससे  बेहतर संयोजन मिल नहीं रहा  था i जो भी हो यह शब्द गलत तो है ही i  रसवाद  का अर्थ तो सामान्य रस चर्चा या रस रंग की बातें ही हैं  i  सादर आपका आभार i  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2014 at 3:37am

एक-पंक्ति मुखड़े की तुकान्तता और प्रथम आधार-पंक्ति की तुकान्तता आगे की आधार-पंक्तियों की तुकान्तता के प्रति भ्रम पैदा करती है, आदरणीय गोपाल नारायनजी..  

विकल मन में जलधि के ज्वार फूटे
तार संयम अनेको बार टूटे  ................अनेकों एक अशुद्ध शब्द है. अनेक स्वयं बहुवचन है.
प्राण आकंठ होकर थरथराये
नेह के बंधन सजीले थे न छूटे
प्यास की वासना उद्दाम ऐसी नयन सागर सहेजे आ गया हूँ I

नयन ने काव्य करुणा के रचे हैं
कौन से पाठ्यक्रम इससे बचे हैं
किसी कवि ने इन्हें जब गुनगुनाया
लाज ने तोड़ डाले सींकचे हैं
गीत संसार को ऐसे न भाते तरह जैसे कि मै सरसा गया हूँ I

उपरोक्त बन्द सहज किन्तु भाव से अत्यंत गहन है. मन प्रसन्न हो गया, आदरणीय.

न जाने कौन सा उन्माद है यह
चरम है और अनहद नाद है यह
रूप में रमना रमकर राम होना ...........  निस्संदेह सहस्र नाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने .. !!
प्रकृति का शास्वात रस्वाद है यह .... ... शाश्वत सही शब्द है तथा रस्वाद क्या रसास्वाद ही है क्या ?   
चाह थी नील-नभ में श्याम हो लूँ राह मे अभ्र से टकरा गया हूँ ... . बहुत सुन्दर ! प्रेय से प्रभावित मन का कितना सुन्दर इंगित है ! वाह वाह !

इस संभवनापूरित नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
7 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
8 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
8 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service