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वह वृद्ध !! // अतुकांत कविता // अन्नपूर्णा बाजपेई

वह वृद्ध !!

कड़कती चिलचिलाती धूप मे

पानी की बूंद को तरसता

प्यास से विकल होंठो पर

बार बार जीभ फेरता

कदम दर कदम

बोझ सा जीवन, घसीटता

सर पर बंधे गमछे से

शरीर के स्वेद को

सुखाने की कोशिश भर करता 

अड़ियल स्वेद

बार बार मुंह चिढ़ाता

थक कर चूर हुआ

वह वृद्ध !!

कुछ छांव ढूँढता

आ बैठा किसी घर के दरवाजे पर

गृह स्वामी का कर्कश स्वर –

हट ! ए बुड्ढे !!

दरवाजे पर क्यों ?

दो घूंट जल की ............

भटकन , कब खत्म होगी

शुष्क कंठ

अवरुद्ध वाणी , कातर नेत्र , हताश !! चल दिया

न मिली पानी की एक भी बूंद

काँपता , हाँफता

वह वृद्ध !!

अझेल ग्रीष्म अपने यौवन पर 

हवा लपट सी

लगती तन पर

सर उठा  निहारे वो अंबर 

नैन मूँद कर 

दिवाकर से कहता

कुछ पल शेष

कुछ कदम हैं शेष

बस कुछ कदम और

घर अब दूर नहीं

खुद को समझाता

वह वृद्ध !!!

 

सह न पाया 

दिवाकर का ताप 

कमजोर थी काया 

गिरा भूमि  पर 

कुछ औचक 

फिर  उठा वह 

झुरझुरी सी तन मे 

फिर उठने की कोशिश भर 

नाकाम !!! 

आह !! क्या  न चल सकूँगा 

उठने का फिर किया प्रयास 

किन्तु न उठ पाया 

जीवन डोर छूटती सी  लगी 

होंठो पर जीभ फेर पुनः 

पानी !! पानी !!! पानी !!!! 

और न उठ पाया 

वह वृद्ध !!!!! 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by annapurna bajpai on June 14, 2014 at 2:24pm

प्रिय जितेंद्र जी आपका बहुत बहुत आभार । 

Comment by annapurna bajpai on June 14, 2014 at 2:23pm

आ0 कुंती दीदी आपको रचना अच्छी लगी , मेरा लिखना सार्थक रहा । आपका आभार दीदी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 13, 2014 at 11:26pm

बहुत मर्मस्पर्शी रचना, बहुत सजीव चित्रण . बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी

Comment by coontee mukerji on June 13, 2014 at 9:09pm

मानव जीवन की यह कैसी विडम्बना है...इंसान चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता....बहुत अच्छी रचना है.... आपको अनेक साधुवाद.

Comment by annapurna bajpai on June 13, 2014 at 6:09pm

आ0 मीना दी आपके स्नेह का यही तो कमाल है कि आप हम सबको लाइन पर लगाए रखती है , कि भटकना नहीं सही दिशा मे चलते रहना है । आपका स्नेह हमे हमेशा इसी तरह मिलता रहे । धन्यवाद मीना दी 

Comment by Meena Pathak on June 13, 2014 at 6:02pm

आप की लेखनी का यही तो कमाल है कि पूरा दृश्य नेत्रों के समक्ष चलचित्र की भाँती घूम जाता है .. बहुत बहुत सुन्दर रचना ,, ढेरों बधाई | सस्नेह 

Comment by annapurna bajpai on June 13, 2014 at 5:44pm

आ0 गोपाल नारायण जी आपको रचना अच्छी लगी , मेरा लिखना सार्थक  हुआ । आपका हार्दिक आभार । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 13, 2014 at 3:40pm

अन्नपूर्णा  जी

वाह कहूं या आह --? क्या चित्रोपम वर्णन हैं i  ऐसा लगता है आपने तसव्वर नहीं किया अपितु उस वृद्ध को स्वयं जिया है i निराला जी याद  आते है - वह आता

                        दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ  पर आता

                        पेट पीठ मिलकर है एक  चल रहा लकुटिया टेक

                        मुठ्ठी भर दाने को मुह फ़ैलाने को

                        वह आता

आपकी सुन्दर कविता को प्रणाम i

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