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उठो हे स्त्री !
पोंछ लो अपने अश्रु
कमजोर नही तुम
जननी हो श्रृष्टि की
प्रकृति और दुर्गा भी, 
काली बन हुंकार भरो
नाश करो!
उन महिसासुरों का
गर्भ में मिटाते हैं
जो आस्तित्व तुम्हारा, 
संहार करो उनका जो
करते हैं दामन तुम्हारा
तार-तार,
करो प्रहार उन पर
झोंक देते हैं जो
तुम्हें जिन्दा ही
दहेज की ज्वाला में,
उठो जागो !
जो अब भी ना जागी
तो मिटा दी जाओगी और
सदैव के लिए इतिहास
बन कर रह जाओगी !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Arun Sri on May 2, 2014 at 11:40am

आह्वान करती हुई कविता ! जगाती हुई ! सार्थक अभिव्यक्ति हुई है !

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 11:25am

आदरणीया कुन्ती दी ...रचना सराहने हेतु बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 11:24am

आदरणीय सुशील सरन जी बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 11:24am

आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी | सादर 

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 11:23am

सादर  आभार आ० आशुतोष जी 

Comment by coontee mukerji on May 2, 2014 at 3:02am

मीना जी , बहुत ही सकारात्मक विचार दिया है आपने. हर स्त्रियों को ऐसी ही प्रेरणा स्रोत चाहिये. सब आँसू के दिन गये. आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by Sushil Sarna on May 1, 2014 at 7:26pm

छ लो अपने अश्रु

कमजोर नही तुम

जननी हो श्रृष्टि की

प्रकृति और दुर्गा भी,

काली बन हुंकार भरो
वाह बहुत ही ऊर्जावान नारी को समर्पित रचना .... हार्दिक बधाई मीना जी

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 1, 2014 at 6:26pm

आदरणीया मीना जी नारियों के सम्मान में लिखी सुन्दर रचना ..होश और जोश में आने को प्रेरित करती
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2014 at 3:40pm

आदरणीया मीना जी ..नारी को नारी के शक्ति की जानकारी देती इस शानदार रचना के तहे दिल बधाई सादर 

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