For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीर दिल पे चलाये छुप के, पर ( ग़ज़ल ) गिरिराज़ भंडारी

2122       1212      112/22

बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं

चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

मैने  देखा  है  वक़्ते   आख़िर  में

हाथ   जितने  दिखे, वो   रीते  हैं

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं

लम्हे खुशियों के ज्यों कपूर उड़े

ग़म के , ज्यों माह साल बीते हैं

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 823

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2014 at 6:36pm

/बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

आदरणीय भाई गिरिराज जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:25pm

आदरणीय बैद्यनाथ भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:23pm

आदरणीय शिज्जू भाई , आपकी सराहना से रचना कर्म को आत्मिक संतोष मिलता है , आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:21pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:20pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 4:52pm

जोरदार शुरुआत ..

बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं...उम्दा मान्यवर 

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं...क्या कहने 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 10:21am

//चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप केपर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं//   वाह आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हैं दिली दाद कुबूल करें

 

Comment by vijay nikore on April 3, 2014 at 3:21am

 

इस अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई, भाई गिरिराज जी।

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2014 at 9:39pm

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी

चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं...............इन दो शेर पर विशेष बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:46pm

आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service