For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२

रस्ते में जिस्म आया मंजिल तलक न पहुँचे

आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

 

मंजिल मिली जिन्हें भी मँझधार में, उन्हीं पर

कसता जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे

 

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

 

घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर

जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 16, 2014 at 12:36am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे.............bahut sundar


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2014 at 12:13am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ये दो शेर बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 8:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे ----------- बहुत लाजवाब शे र लगा , बहुत बधाई ॥

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:12pm

सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई  जी  .... हार्दिक बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 1:05am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

दो भाव एक प्रयास.. यानि उम्दा ! 

वाह वाह !!

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 9:53pm

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

 

घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर

जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे.... वाह वाह बहुत खूब आ. धर्मेन्द्र जी हार्दिक बधाई प्रेषित है ..सादर

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2014 at 5:15pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई ...
Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:33pm

 

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"समाधि के फूल वे लड़के बापू की समाधि से एक फूल उठा लाए।घर खुशबू से नहा गया।उनकी खुशियों का ठिकाना न…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निशा स्वस्ति "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"उस्ताद-ए-मुहतरम आदरणीय समर कबीर साहिब की आज्ञानुसार :- "ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" अंक 168…"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रिय:।"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल पर आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय फिर अन्य भाषाओं ग़ज़ल कहने वाले छोड़ दें क्या? "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"गुरु जी जी आप हमेशा स्वस्थ्य रहें और सीखने वालों के लिए एक आदर्श के रूप में यूँ ही मार्गदर्शक …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"//मेरा दिल जानता है मैंने कितनी मुश्किलों से इस आयोजन में सक्रियता बनाई है।// आदरणीय गुरुदेव आप…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें आ अमीर जी की इस्लाह भी ख़ूब हुई"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सभी गुणीजनों की बेहतरीन इस्लाह के बाद अंतिम सुधार के साथ पेश ए ख़िदमत है ग़ज़ल- वाक़िफ़ हुए हैं जब…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service