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ग़ज़ल : आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२

रस्ते में जिस्म आया मंजिल तलक न पहुँचे

आँखों में जो न उतरे वो दिल तलक न पहुँचे

 

मंजिल मिली जिन्हें भी मँझधार में, उन्हीं पर

कसता जहान ताना, साहिल तलक न पहुँचे

 

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

 

घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर

जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 561

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 16, 2014 at 12:36am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे.............bahut sundar


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2014 at 12:13am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ये दो शेर बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 8:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे ----------- बहुत लाजवाब शे र लगा , बहुत बधाई ॥

Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:12pm

सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई  जी  .... हार्दिक बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 1:05am

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

दो भाव एक प्रयास.. यानि उम्दा ! 

वाह वाह !!

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 9:53pm

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

मैं चाहता हूँ उसकी नज़रों से कत्ल होना

पर बात ये जरा सी कातिल तलक न पहुँचे

 

घटता है आज गर तो कल बढ़ भी जायेगा, पर

जानम ये प्यार अपना बस निल तलक न पहुँचे.... वाह वाह बहुत खूब आ. धर्मेन्द्र जी हार्दिक बधाई प्रेषित है ..सादर

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2014 at 5:15pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई ...
Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:33pm

 

जो पिस गये वो चमके हाथों की बन के मेंहदी

यूँ तो मिटेंगे वे भी जो सिल तलक न पहुँचे

 

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