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अतुकांत -- " कुरेदिये नही " ( गिरिराज भंडारी )

समय के ,

सूर्य के ताप से

सूखता हुआ मल,

स्वयम ही,

स्वाभाविक रूप से ,

हो जायेगा

दुर्गन्ध हीन |

और फिर

वातावरण स्वयम ही

हो जायेगा ,

शुद्ध ,परिशुद्ध

निर्मल |

बस ,

आप कुरेदिये नही

बारम्बार

सूखते हुये मल को |  

शायद अहं, मल का भी हो

या अहं, मल ही होता हो ||

*******************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 6:40pm

आदरणीय श्याम भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ

Comment by annapurna bajpai on December 19, 2013 at 2:16pm

आ० भण्डारी जी सुंदर भावो से अहं का प्रस्तुतिकरण किया है , बधाई आपको । 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 11:01am

शायद अहं, मल का भी हो

या अहंमल ही होता हो ||

प्रक्रति का सूक्ष्म निरीक्षण ...sahi me

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 10:33am

अहं का नाश शायद समय ही कर सकता है, आपके सार्थक तर्कशक्ति  को नमन आदरणीय गिरिराज जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 7:19pm

मित्रानुज

एक सामान्य सी बात को आपने कितना महनीय बना दिया  i यही वास्तविक प्रतिभा है i प्रक्रति का सूक्ष्म निरीक्षण और फिर उसका अपने  ढंग से प्रस्तुतीकरण i  मै आपकी ल्र्खनी को प्रणाम करता हूँ , मित्र  i

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 5:57pm

वाह...! संदेशात्मक चिंतन..... अच्छी रचना...

आ गिरिराज भाई जी सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by Meena Pathak on December 18, 2013 at 2:04pm

आदरणीय गिरिराज जी आप जिस विधा में भी रचना रच दें, लाजवाब रचना होती है | बहुत बहुत बधाई | नमन आप को 

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 11:12am
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

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