For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'प्रेम' अतुकान्त

प्रेम करो प्रकृति द्वारा
सृजित जीवन से
तो ही जान सकोगे
जीवन के गर्भ में
छुपे अनगिनत रहस्यों को
प्रेम से खुलेंगे
जीवन के वो द्वार
जिनके लिए जन्मों जन्मों
से भटकते रहे तुम
जिनसे अब तक
अन्जान रहे तुम
प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम '

Views: 698

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2013 at 12:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया किरण आर्या जी ।

Comment by ram shiromani pathak on December 11, 2013 at 12:29am

भाई नीरज जी सर्वप्रथम इतनी अमूल्य जानकारी के लिए धन्यवाद। ……मेर प्रश्न यह था

प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 9, 2013 at 5:28pm

आदरणीय नीरज प्रेम भाई, बहुत सार्थक रचना की है आपने !!!!! प्रेम ही एक मात्र भाव है, बाक़ी भाव प्रेम की अनुपस्थिति मात्र है ! जिसकी समझ जड़ चेतन दोनो की बराबर है !!!!! इस रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!

Comment by Meena Pathak on December 9, 2013 at 2:19pm

सुन्दर अभिव्यक्ति 
बधाई आदरणीय 
सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 2:11pm

बहुत ही सुन्दर प्रयास नीरज भाई बधाई आपको

Comment by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:30pm

सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति .......शुभं

Comment by Neeraj Nishchal on December 8, 2013 at 11:51pm

आदरणीय पाठक जी आयुर्वेद का ही उदाहरण ले लेते हैं
एक से एक प्राकृतिक औषधियों के बारे में ऋषि लिखता है
ऐसा तो नही उसने साड़ी जड़ीबूटियां अपने पर प्रयोग कर कर के देखी होगी
ऐसा सोचना तो बिलकुल तर्कसंगत नही है आप किसी जंगल में जाकर
बिना जाने किसी जड़ी बूटी का प्रयोग तो अपने ऊपर कर नही लेंगे निश्चित ही
वो ऋषि जिया होगा इस प्रकृति के साथ सुनी होगी इनकी खामोशियों कि आवाज़
जैसे किसी जगदीश चन्द्र बसु ने महसूस की समझा होगा इस प्रकृति को जाना होगा
जैसे एक छोटे बच्चे से प्रेम से पूछो तो कुछ भी बता देता है पर डाँट के पूछो तो शायद
वो आपसे भी बड़ा जिद्दी निकले ऋषि ने सीखा होगा प्रेम पूर्ण होकर प्रकृति के साथ जीना ।
प्रेम से मिलता है परमात्मा प्रेम से मिलती है प्रकृति प्रेम से खुलते हैं उसके रहस्यों के द्वार
जैसे गिरा देती है प्रेयसी अपने परदे अपने प्रेमी के सामने बस ऐसे ही प्रकृति प्रेम में अविभूत
होकर अपने सारे राज खोल कर रख देती है जिन रहस्यों को जानकर कोई बेचैन सिद्धार्थ शांत बुद्ध
हो जाता है जिनको जान ने वाला कबीर काशी छोड़ कर मरने के लिए मगहर चला जाता है
जिनको जान ने वाला जीसस हँसते हँसते शूली चढ़ जाता है और प्रभु से कहता है इन्हे क्षमा करना
ये नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं ।
बस इतना ही सादर ।

Comment by Neeraj Nishchal on December 8, 2013 at 11:14pm

आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी

जीवन के साथ प्रकृति के साथ हमने सिर्फ जबरदस्ती की है
बलात्कार किये हैं हिंसा की है ये इसी का परिणाम है
कि हमारे जीवन में इतने दुःख इतनी चिंताएं और इतनी पीड़ाएं हैं
इसके कारण तलाशने चाहिए हमे
एक छोटा सा बीज उसे तोड़ कर देखो उसमें कुछ न मिलेगा
और अगर उसे प्रेम को समर्पण होने दो उसे मिटटी में डाल दो फिर
उसे मिटने का अवसर दो,देखो चमत्कार कितना कुछ छुपा है उसमे
शाखाएं पत्तियां फूल फल सुगंध पर ये सब प्रेम में समर्पित होकर मिले हैं
ये प्रेम कि महिमा है इंसान अपनी हस्ती मिटाता है तो खुदा हो जाता है
इस लिए महावीर ,बुद्ध , कबीर , नानक , कृष्ण, जीसस , मोहम्मद साहब ,दादू ,
बुल्लेशाह , उमर खय्याम आदि जैसे प्रेमियों को प्रकृति ऐसे समर्पित हो गयी
जैसे प्रेयसी अपने प्रेमी को समर्पित होती है , प्रकृति आपको समर्पित होना ही चाहती है
पर पहला समर्पण आपका होगा आपके अहंकार का होगा ये तो महसूस करने वाली बाते हैं
बहुत ज्यादा शब्दों में आपसे क्या कहूं ।
सादर

Comment by ram shiromani pathak on December 8, 2013 at 8:49pm

सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय  भाई जी //////

खोल कर रख देगी 
सारे राज तुम्हारे सामने 
जैसे गिरा देती है प्रेयसी 
परदे अपने प्रेमी के सामने ।आदरणीय भाई जी समझ में नहीं आया। ......कृपा कर मार्गदर्शन करें भाई.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
6 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service