For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोर का तारा छिपा जाने किधर है //गज़ल //कल्पना रामानी

212221222122

आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।

रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।

 

फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,

रात पूनम पर अमावस की मुहर है।

 

ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,

भोर का तारा छिपा जाने किधर है।  

 

डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,

मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।

 

खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,

साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।

 

हसरतों के फूल चुनता मन का माली,

नफरतों के शूल बुनती  सेज पर है। 

 

आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,

हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on December 8, 2013 at 6:15pm

आदरणीया मीना जी, कुंती जी, प्राची जी, सविता जी,आदरणीय अरुण शर्मा जी , अजय जी  गिरिराज जी,गोपाल जी, अभनव अरुण जी,

आप सबकी प्रोत्साहित करती हुई  टिप्पणियों के लिए हृदय से आभारी हूँ।

सादर

Comment by Abhinav Arun on December 8, 2013 at 5:33am

आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,

हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है।..आदरणीया कल्पना जी यह एक शेर ..अप्रतिम ..सम्पूर्ण है... हालात को आईना दिखाती ग़ज़ल ..विमर्श को आत्मचिंतन को प्रेरित करती इस ग़ज़ल लिए हार्दिक साधुवाद उत्तम प्रस्तुति !!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2013 at 10:58pm

महनीया

फिर  रहा है दिन ----------

क्या बात है ?

बेमिसाल  i बेमिसाल i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 7, 2013 at 10:49pm

आदरणीया कल्पना जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , हर शे र अच्छे हुये हैं , आपको हार्दिक बधाई !!!!

 

Comment by ajay sharma on December 7, 2013 at 10:34pm

bahut hi acchhi gazal huyi hai .......

खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,

साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।

kya baat hai 

Comment by savitamishra on December 7, 2013 at 7:23pm

बहुत खुबसूरत ...

आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,

हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 6:01pm

आदरणीया कल्पना रमानी जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर अच्छे बन पड़े हैं बहुत बहुत बधाई आपको.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2013 at 5:58pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी 

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है..

ये दो शेर ख़ास तौर पर पसंद आये 

फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,

रात पूनम पर अमावस की मुहर है।

 

ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,

भोर का तारा छिपा जाने किधर है।  

बहुत बहुत बधाई 

Comment by coontee mukerji on December 7, 2013 at 3:42pm

हसरतों के फूल चुनता मन का माली,

नफरतों के शूल बुनती  सेज पर है। .............लाजवाब.कल्पना जी.शुभकामनाएँ

Comment by Meena Pathak on December 7, 2013 at 1:46pm

बहुत सुन्दर गज़ल आ० कल्पना दी | सादर बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service