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लघुकथा : बलात्कार (गणेश जी बागी)

"इंस्पेक्टर प्लीज़ लॉज माय एफ आई आर",  आधुनिक परिधान पहने खूबसूरत युवती गॉगल्स को सर पर चढ़ाते हुए रौबदार आवाज़ मे बोली  | 
"मैडम कृपया बैठिए और आराम से बताइए कि आख़िर बात क्या हुई" 
"इंस्पेक्टर, उसने मेरा रेप किया है, मैं उसके खिलाफ केस दर्ज करवाने आई हूँ"
"कब कैसे और कहाँ हुआ यह सब, कृपया विस्तार से बताएँ",   इंस्पेक्टर ने युवती से पूछा | 
"इंस्पेक्टर, यह दो महीने पहले की बात है, जब हम दोनो अकेले दुबई टूर पर गये थे "
"तो एफ आई आर दो महीने बाद क्यों ?"
"वो कमीना दूसरी लड़की के साथ कल सिंगापुर टूर पर...."

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा :मतिमूढ़

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 1:07pm

प्रिय शुभ्रांशु भाई, आप तो न्यायिक प्रक्रिया को नित्य दिन ही देखा करते हैं आपसे क्या छुपा है ! बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 1:04pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सत्यनाराण सिंह जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 1:04pm

आदरणीय डॉ अनुराग सैनी जी, आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 1:02pm

आपका बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी नवलेखन में सहायक होती है । 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 16, 2013 at 9:54pm

बडे शहरों की हवा बिगड़ी हुई है और  वर्तमान  कानून भी एक पक्षीय हो गया है । यही हाल रहा तो कुछ बरस में लाखों पुरुष विशेषकर युवा जेल में चक्की पीसते नज़र आयेंगे ॥ लघु कथा की हार्दिक बधाई गणेश भाई ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on November 16, 2013 at 8:34pm

ये लघु-कथा, दो चरित्रों के अन्तः चरित्र को रेखांकित करने में सफल रही है ...मुझे सार्थक लगी ..बहुत बढ़िया बागी साहब ...:) 

Comment by Neeraj Neer on November 16, 2013 at 8:07pm

हा हा हा .. बहुत जबरदस्त कटाक्ष करती हुई लघु कथा .. बलात्कार का एक पहलु यह भी है .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 7:58pm

कोई कथा अथवा लघुकथा मुख्यतः उसके कथानक, पात्रों के चरित्र-चित्रण, निहित वातावरण के वर्णन, इसके पात्रों के पारस्परिक कथोपकथन, उनकी प्रयुक्त भाषा एवं कथ्य शैली तथा कथा या लघुकथा के उद्येश्य जैसे छः विन्दुओं की कसौटी पर मान्यता पाती है. मैं इन्हीं विन्दुओं के सापेक्ष किसी कथा या लघुकथा को आँकता हूँ.

गणेश भाई आपकी प्रस्तुत लघुकथा इन सभी विन्दुओं पर पूरी कसावट में है.

प्रस्तुत कथा का कथानक अलोप सा प्रतीत अवश्य होता है किन्तु इसके अति मुखर वातावरण के कारण वह इतनी सान्द्रता से अभिव्यक्ति पाता है कि पाठक मन में मानों चलचित्र सा घूम जाता है. साथ ही साथ, जिस बेलौस मग़र चलताऊ ढंग को बखूबी उभारा गया है वह कथा के उद्येश्य को सार्थकता से पाठकों के सामने परोस देता है.

मैं लघुकथा की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए आपको इस प्रस्तुति के लिए बारम्बार बधाई दे रहा हूँ. शुभेच्छाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 16, 2013 at 7:28pm

बड़ी मुश्किल हो रही है | पुलिस में भी हर कोई आसानी से ऍफ़ आई आर दर्ज कराने जाते हुए डरता है टो दूसरी और

बदले की भावना भी एक समस्या बनी हुई है | वर्मान व्यवस्था पर करारा व्यंग किया है | हार्दिक बधाई  

Comment by Shubhranshu Pandey on November 16, 2013 at 6:53pm

आदरणीय गणॆश भैया, 

IPC 376 के हो रहे  'उपयोग' पर एक करारा व्यंग.....

बधाई.

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