For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बताशा लगती हो तुम

बताशा लगती हो तुम

.

हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,

घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,

जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,

तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,

आँखें मूँद कर मृतप्राय हुए चित में यूँ,

सुंदर, सजग अभिलाषा लगती हो तुम,

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।

----------------------------------- सुशील जोशी

“मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 1161

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:13pm

टिप्पणी कर उत्साहवर्धन करने हेतु आपका अतिश: धन्यवाद आ0 शिज्जू भाई जी....

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:12pm

रचना को पसंद कर टिप्पणी देने हेतु सादर आभार आपका आ0 उमेश जी.....

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:12pm

बहुत बहुत धन्यवाद आपका आ0 लक्ष्मण प्रसाद जी......

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:11pm

आपकी टिप्पणी से मन प्रफुल्लित हो उठा है आ0 अन्नपूर्णा जी..... सादर आभार...

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:11pm

हिंदी में कितनी ताकत, कितना माधुर्य है..... यह आपकी टिप्पणी देखकर ही पता लग रहा है आ0 डॉ. गोपाल जी..... क्योंकि शायद इसी प्रस्तुति से आपने हिंदी में टिप्पणी देने की शुरुआत की है क्योंकि इससे पहले की आपकी टिप्पणियाँ Hinglish में थीं.......... तो फिर अपनी प्रेयसी को इससे कैसे अछूता रख सकता हूँ मैं...... हा..हा..हा....... आशीर्वचनों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका...

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:13pm

आपकी सार्थक टिप्पणी पाकर रचना भी सार्थक हुई आ0 गिरिराज जी.... हार्दिक धन्यवाद...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 9, 2013 at 5:47pm

सुंदर शब्दों  से सुंदरता की तारीफ , बधाई सुशील भाई।

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:32pm

वाह आदरणीय सुशील भाई जी प्रियतमा के गुणों का वर्णन अलग अंदाज में क्या कहने बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:44pm

बहुत खूबसूरत रचना आदरणीय सुशीलजी दिलीदाद कुबूल करें

Comment by umesh katara on November 9, 2013 at 3:58pm

सुन्दर रचना है वाह्ह्ह् बधायी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service