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राह आसां नहीं है उल्फत की

२१२२     १२१२     २२

जिंदगी और इम्तिहान न ले

कुछ भी ले ले मेरा गुमान न ले 

मशविरा है यही फकीरों का  
यूं कभी दी हुई ज़बान न ले  


राह आसां नहीं  है उल्फत की

नन्हे से दिल मे आसमान न ले

चल खिलोनों से खेलते हैं हम

तू अभी हाथ में कृपान न ले 

जो पड़ोसी है मुल्क उसको बता  
असलहों से भरी दुकान न ले

खुल के जी खुद भी, सब को दे जीने  

अपनी मुट्ठी मे तू जहान न ले  

जिन की झोली में बस दुआयें हों  

उन फकीरों से उन की आन न ले

मौलिक एवं अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 23, 2013 at 4:07pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल बन पड़ी है शेर नंबर 6 में तकाबुले रदीफ़ दोष है कृपया वज्न या बह्र इंगित कर दिया करें ताकि समझने में आसानी हो सके और प्रश्न चिन्ह न लगें. इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on October 23, 2013 at 1:54pm

बहुत सुंदर .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:17am

आदरणीय विजय सर ...आपके हौसला बढाते शब्द मुझे उर्जा मय बनाते हैं ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:15am

आदरणीय अखिलेश जी बिलकुल हो सकता है ..नन्हे शब्द में भी मुझे मासूमियत का ही भाव लगता है ..मुझे भी ग़ज़ल की बारीकियों का ज्ञान नहीं है ग़ज़ल से मेरा जुडाव अभीचंद महीनात पहले का ही है ..इस प्रश्न का सटीक उत्तर विद्वत जनो से ही मिल सकेगा 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:10am

आदरणीय सौरभ सर ..मैं आपसे सहमत हूँ आपकी सलाह पर मैं लगातार अमल भी करता रहा पर इस बार मुझसे अनजाने में पुनः भूल हुई ..इसके लिए क्षमा चाहता हूँ ..भविष्य में इसका ध्यान रखूंगा ताकि पुनरावृत्ति न हो ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:08am

आदरणीय शिज्जू जी ..आपके प्रोत्शाहन से भरे शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:05am

आदरणीय गिरिराज जी ..हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 8:04am

आदरणीय सौरभ जी ..प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद ..सादर 

Comment by vijay nikore on October 23, 2013 at 7:19am

बहुत सुन्दर गज़ल है, बधाई।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 22, 2013 at 9:52pm

अच्छी गज़ल हुई है आशुतोष भाई ,बधाई। क्या"'नन्हें से'"की जगह " मासूम " लिखना ठीक है । गज़ल की बारीकियाँ मुझे नहीं मालूम।

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