For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़ी बातें मियां छोड़ों

१२२२     १२२२

बड़ी बातें मियां छोड़ों 

हमारा दिल न यूं तोड़ों

न हिन्दू है न वो मुस्लिम 

वो हिंदी है उसे जोड़ो 

छलकती हैं जहाँ आँखें 

मुझे रिन्दों वहां छोड़ों 

लगें दिलकश जो  शाखों पे 

हसीं गुल वो नहीं तोड़ों 

मिलेगी वक़्त पर कुर्सी 

मियाँ कुर्सी को मत दौड़ों 

लुटी कलियाँ चमन की हैं 

दरिंदों को नहीं छोड़ों 

बचा कुर्सी वतन बेंचा 

शरारत ये जरा छोड़ों 

जहर है अब हवाओं में 

हवा का आज रुख मोड़ों 

मौलिक व अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 19, 2013 at 6:28pm

अच्छी ग़ज़ल डॉ साहिब बहुत  बढीया सामयिक भाव है ..छोटी बहर ने रंग जमाया है , बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 6:14pm

आदरणीय आशुतोष भाई , छोटी बह्र को आप निभा ले गये इसके लिये आपको बहुत बधाई !!!! सभी शेर अच्छे हुये है !!! पुनः बधाई !!!!

Comment by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 5:10pm

न हिन्दू है न वो मुस्लिम 

वो हिंदी है उसे जोड़ो .....बहुत बढ़िया व  संदेशप्रद मिसरे ...वाह जी डॉक्टर साहिब ...वाह :) 

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 4:59pm

आ. Dr Ashutosh Mishra जी
आभार आपका कि आपने हमें इस योग्य समझा। वैसे मैं मार्गदर्शन देने की स्थिति में नहीं हूं। हां, सीखने सिखाने के इस सफर में हम और आप सहभागी जरूर बन सकते हैं। सादर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 4:56pm

आदरणीय संदीप जी ...हौसला अफजाई के लिए हादिक धन्यवाद 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 4:56pm

आदरणीय शकील जी ...मैं भी संदीप जी की तरह पहले तो आपकी पैनी नजर की दाद देना चाहोंगा ...और गुजारिश भी करूंगा की भविष्य में जब कभी कोई कमी नजर आये यूं ही सलाह देने की कृपा करें ..मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद के साथ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 4:27pm

वाह वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद क़ुबूल कीजिये

आदरणीय शकील जी की पैनी नज़र का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 3:56pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी, इस उम्दा गजल के लिए बधाई स्वीकारें। चूंकि बह्र छोटी है, इसलिए इसे निभाना कोई आसान काम नहीं है।

एक बात कहना चाहूंगा। आपने छोड़ो, तोड़ो, जोड़ो के साथ दौड़ो को काफिये में बांधा है। मेरे विचार में यहां सिनाद दोष आ रहा है। क्योंकि दौड़ो में हर्फ-ए-रवी (ड़) से पहले दीर्घ स्वर का विरोध हो रहा है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
13 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service