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फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ ( गीत ) गिरिराज भंडारी

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

***********************

दर्द इतना दर्द फैला देख कर

रोज ऐसे रक्त बहता  देख कर

मून्द कर आँखे भला कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

 

भाइयों के बीच जब दीवार हो

और हल के वास्ते तलवार हो

हाथ बान्धे मै भला कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

 

अंग मेरे   देश का  कटते रहे

उसपे देश शांति  ही रटते रहे

शीत रक्त फिर भी मै कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

 

भारतीयता पड़ी मूर्छित  यहाँ

सभ्यता परदेश की चर्चित यहाँ

स्वधर्म त्याग मै भला कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

 

जब कर्णधार देश  लूट खा रहे

फिर भी राष्ट्र्-भक्त कहे जा रहे

शांत मन कहिये भला कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

 

बेड़ियाँ पड़ने लगी है शब्द को

तमगे मिले,भाट को निःशब्द को

रख के कलम चुप भला कैसे रहूँ

फिर कहो तुम मूक मै कैसे रहूँ

!!!मौलिक एवँ अप्रकाशित !!! ( संशोधित )

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on October 6, 2013 at 1:18pm

वाह... वर्तमान स्थितियों को बयाँ करते इस गीत के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2013 at 12:18pm

वाह आदरणीय गिरिराज सर बहुत सुंदर रचना इस  ह्रदयस्पर्शी गीत के लिये दिली दाद कुबूल करें 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 11:55am


   गिरिराज , बहुत बढ़िया कविता है । देश की वर्तमान हालत ,  जिस  पर  भ्रष्ट राजनेताओं की अकर्मण्यता  देख  देशप्रेमियों की कुछ कर गुजरने की छटपटाहट का सजीव चित्रण  दिखता है इस कविता में । बहुत बहुत बधाई । 

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 6, 2013 at 11:26am
आदरणीय बहुत ही सुंदर रचना विशेषेकर
जब कर्णधार देश लूट खा रहे

फिर भी राष्ट्र्-भक्त कहे जा रहे

शांत मन कहिये भला कैसे रहूँ

तुम्ही कहो ,कि मूक मै कैसे रहूँ

बधाई बधाई आपको बधाई
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 6, 2013 at 11:11am

भाइयों के बीच जब दीवार हो

और हल के वास्ते तलवार हो

हाथ बान्धे मै भला कैसे रहूँ

तुम्ही कहो ,कि मूक मै कैसे रहूँ

बहुत सुंदर सशक्त रचना,बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 6, 2013 at 11:02am

तीखा व्यंग्य है भ्रष्ट नेता अफसर और काले अंग्रेज लुटेरों पर। बधाई छोटे भाई ।

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 10:08am

....

रख के कलम चुप भला कैसे रहूँ

तुम्ही कहो ,कि मूक मै कैसे रहूँ     ...सुन्दर सशक्त संदेशपरक , हार्दिक बधाई आदरणीय श्री गिरिराज जी !!

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