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कौन रोता है , यहाँ?

अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,

आलस्य घुला है, नींद सघन है.

प्रजा बेखबर,  सत्ता मदहोश है,

विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,

फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.

जो चाकर है, वही स्वामी है

जो स्वामी है, वही भृत्य है .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

बिसात बिछी सियासी चौसर की

शकुनी के हाथों फिर पासा है .

अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता है

शत्रु ने चंहुओर से फासा है .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

 पांचाली का रूदन अरण्य है,

(दु) शासन का कृत्य जघन्य है .

शांत पड़े मुरली के स्वर

स्व धर्म का अभिमान शून्य है.

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

कल की किसी को परवाह नहीं है,

स्वदेश हित की चाह नहीं है

सबकी राहें हैं जुदा जुदा

देश की एक कोई राह नहीं .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

नीरज कुमार

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित

विधा : छंद मुक्त 

Views: 880

Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:23pm

सलीम शेख जी बहुत आभार आपका 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:23pm

आदरणीय परवीन मालिक जी हार्दिक आभार आपका .. 

Comment by Neeraj Neer on September 16, 2013 at 8:22pm

बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय गिरिराज भंडारी जी .. 

Comment by saalim sheikh on September 16, 2013 at 2:08pm

''जो चाकर है, वही स्वामी है

जो स्वामी है, वही भृत्य है''

कटु सत्य!
अति सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना! बहुत बहुत बधाई

Comment by Parveen Malik on September 16, 2013 at 1:22pm
सबको अपने फायदे की पड़ी है देश की हालत क्या है किसी को फिक्र नहीं !
कोई अवतार नहीं आने वाला इसे सुधारने हर किसी को अपने स्तर पर सुधरने की जरुरत है ऐसा मेरा मानना है !
बहुत बढिया रचना लिखी देश की सामाजिकता को समाहित करती ... बधाई आदरणीय !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 16, 2013 at 12:03pm

आदरणीय  नीरज जी , देश की वर्तमान स्थिति को अच्छी तरह बयान कर सकी है आपकी रचना !! बहुत बधाई !!

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