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एक शाम

उदास सी थी

निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित

निहारती सी

दूर तलक शून्य मे।  

कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन

अचेतन जड़ हो गए जो

पुकारती सी

दूर तलक शून्य मे ।

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

वैचारिक या मौन

विजयी पर प्रसन्न नहीं

श्रोता सी

दूर तलक शून्य मे ।

अन्तर्मन के क्रंदन को

छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो

अलौकिक आभा थी

दूर तलक शून्य मे ............... ।  

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

 

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Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 1:18pm
आदरणीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार आप वरिष्ठ जनों की टिप्पणी से मनोबल दो गुना हो जाता है ।
Comment by annapurna bajpai on September 16, 2013 at 1:17pm
आदरणीय बृजेश जी आपका आभार यों ही उत्साह बढ़ते रहिए ।
Comment by vijay nikore on September 16, 2013 at 7:44am

एक अति सुन्दर रचना ! बधाई...बधाई ... बधाई, आदरणीया अन्नपूर्णा जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:12pm

बहुत सुन्दर! छंदमुक्त में आपका ये प्रयास बहुत ही सुन्दर है. प्रवाह भी बहुत अच्छा है. मन प्रसन्न हो गया आपकी ये रचना पड़कर.

आपको हार्दिक बधाई.

Comment by annapurna bajpai on September 15, 2013 at 6:19pm
आपका बहुत आभार आदरणीय अरुण शर्मा जी ।
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 14, 2013 at 10:59pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी क्या कहूँ बस पढ़कर आनंद आ गया काश अतुकांत शैली में मुझे भी लिखना आता है बहुत ही सुन्दर बहुत बहुत बधाई.

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 1:32pm
आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार ।
Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 1:31pm
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी आपका धन्यवाद ।
Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 1:31pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 1:30pm
आदरणीय जितेंद्र जी आपका हार्दिक आभार ।

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