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आज मैं सर को झुकाने आया हूँ

पुष्प भावों के चढाने आया 

आज मैं सर को झुकाने आया 

बस रही है आप की ही तो कृपा 

बात ये दिल की जताने आया 

कर्ज में डूबा है कतरा कतरा 

कर्ज किंचित वो चुकाने आया 

एक रिश्ता है गुरु चेले में 

आज वो रिश्ता निभाने आया 

ज्ञान दाता हो बिधाता सम  तुम 

दीप दिल का मैं जलाने आया 

ज्ञान रग रग में समाहित जिनका 

उनको कुछ दिल की सुनाने आया 

जग में  महती है जो रिश्ता सबसे 

आशु वो रिश्ता बताने आया 

डॉ आशुतोष मिश्र \

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 4, 2013 at 11:30pm

ज्ञान दाता हो बिधाता सम  तुम 

दीप दिल का मैं जलाने आया 

ज्ञान रग रग में समाहित जिनका 

उनको कुछ दिल की सुनाने आया

प्रिय डॉ आशुतोष जी ..सुन्दर भाव ...काश मानवता और रिश्ते सदा बने रहें
बधाई
भ्रमर ५

Comment by annapurna bajpai on September 4, 2013 at 10:35pm

अति सुंदर !!!!  जग मे महती है जो रिश्ता सबसे 

                   आशु वो रिश्ता बताने आया हूँ  .......................... आज के दौर मे रिश्तों की धाती ही खाली हो रही है ।  आपकी इस सुंदर रचना के लिए आपको बधाई । 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 10:27pm

बेहतरीन रचना ... हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 4, 2013 at 9:22pm

बस रही है आप की ही तो कृपा
बात ये दिल की जताने आया
कर्ज में डूबा है कतरा कतरा
कर्ज किंचित वो चुकाने आया ///

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय आशुतोष मिश्र जी //हार्दिक बधाई आपको

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