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लघुकथा : सांप्रदायिक (गणेश जी बागी)

त्रिपाठी जी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी के नेता हैं । सुबह-सुबह अख़बार के साहित्यिक कालम मे प्रकाशित एक कहानी को पढ़ कर भड़के हुए थे । लेखक ने कहानी में एक मक्कार पात्र का नाम अल्पसंख्यक समुदाय से लिया था । बस नेता जी को उस कहानी मे सांप्रदायिकता की बू आने लगी | उन्होंने फ़ोन कर आनन-फानन में अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगो को बुला लिया । लेखक का पुतला आदि जलाकर विरोध प्रकट करने की बात तय हो गयी | 

घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना दी, "मालिक मालिक, कुछ लोग आप से मिलने आए हैं "  
"तुम उन लोगो को बरामदे मे बिठाओ, शरबत-पानी पिलाओ, मैं तैयार होकर आता हूँ "
नेता जी तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि उनकी नज़र छोटू पर पड़ी, "अरे.. ये स्टील के गिलासों में क्या लेकर जा रहा है, रे.. ! " 
"मालिक शरबत है, आपने ही कहा था न !" 
"पगलाया है का..? " नेता जी उसपर गरजे, "शरबत स्टील के गिलासों मे क्यों लेकर जा रहा है ? दिखता नहीं, वो लोग दूसरे धर्म के हैं ?.. वहाँ आलमारी में शीशे के गिलास पड़ें होंगे, ले जा उस में.. . "

  • समाप्त 
(मौलिक व अप्रकाशित)
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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2013 at 11:00pm

आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार । 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 21, 2013 at 12:15pm

बाप रे बाप....हद है स्पष्टता की... एक दम से चौका मारा है... कहने को कुछ बचा ही नहीं है....वाह...

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:24pm

आदरणीय गणेश जी  बहुत ही सटीक व्यंग किया है आपने //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 11:15am

दोहरे मानदंडों पर सटीक प्रहार. चंद पंक्तियों में ही, बहुत कुछ कह देने वाली लघुकथा. कोटिशः बधाई.

Comment by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 11:12am

यही हमारे देश की तस्वीर है।

सशक्त विचारोत्तेजक लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 19, 2013 at 11:17pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, लघुकथा पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, आभार आपका ।  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 19, 2013 at 9:38pm

वीनस भाई, आपका सुझाव सर माथे, कभी कुछ भाव उत्पन्न हुए तो कहानी लेखन का प्रयत्न करूँगा, एक बार फिर बहुत बहुत आभार | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 19, 2013 at 8:17pm

हाथी के दांत खाने के कुछ और , दिखाने के कुछ और,

धर्मनिरपेक्षता की ओट, मात्र वोट के लिए, बस यह ही सच्चाई है हमारे नेताओ की

नेताओ की वास्तविकता दिखलाती , लघुकथा पर हार्दिक बधाई आदरणीय बागी जी

Comment by D P Mathur on August 19, 2013 at 12:27pm

आदरणीय बागी सर , सस्ती लाकप्रियता पर बहुत ही सही ढ़ंग से कटाक्ष किया गया है कथा लघु जरूर है पर इसमें गहन सीख छिपी है। 

Comment by बृजेश नीरज on August 19, 2013 at 12:13pm

यही है सच्ची धर्मनिरपेक्षता!? बहुत अच्छे से उभारा है आपने इस प्रश्न को! आपको हार्दिक बधाई!

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