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लघु -कथा - अधूरा काम

बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by वीनस केसरी on August 15, 2013 at 3:33am

फैज़ साहब का एक शेर बड़ी शिद्दत से याद हो आया ....

वो बात सारे फ़साने में जिसका जिक्र न था

वो बात उनको बड़ी नागवार गुजारी है

जब हम अपनी रचना में बिना कहे कोई बात कह जाएँ तो चमत्कार से पाठक को बाँध लेते हैं ... अपने ये चमत्कार इस लघुकथा में करके दिखाया है

तहे दिल से ढेरो मुबारकबाद


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Comment by Dr.Prachi Singh on August 14, 2013 at 10:59pm

बहुत ही कसी हुई सुन्दर संदेशपरक सार्थक लघुकथा 

बहुत बहुत बधाई आ० शुभ्रा शर्मा जी 

Comment by shubhra sharma on August 14, 2013 at 10:57am

आदरणीय जीतेन्द्र जी , धन्यवाद 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 14, 2013 at 9:43am

आदरणीया शुभ्रा जी

आपने छोटी सी रचना से, बहुत सशक्त सन्देश दिया

बहुत बहुत बधाई

Comment by shubhra sharma on August 13, 2013 at 4:42pm

आदरणीय अमन जी , अतिलघु कथा अपने सही रूप में पहुँचा ,धन्यवाद 

Comment by shubhra sharma on August 13, 2013 at 4:38pm

आदरणीया विनीता जी , बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Vinita Shukla on August 13, 2013 at 3:00pm

कुछ पंक्तियों में ही, आपने बहुत बड़ी बात कह दी. "देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर" आपकी कथा की ये पंक्तियाँ, इस कसौटी पर बिलकुल खरी उतरती हैं. बधाई एवं साधुवाद.

Comment by aman kumar on August 13, 2013 at 2:34pm

 १ लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा 

 2 उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है

सारी समस्या को ही आपने अपनी एस कथा से सुलझा दिया है आपका आभार ......

Comment by shubhra sharma on August 13, 2013 at 10:44am

ओ बी ओ परिवार को एक मंच देने ,सही मार्गदर्शन के लिए  तहे दिल से मेरा आभार ,

Comment by shubhra sharma on August 13, 2013 at 10:39am

आदरणीय शुभ्रांशु  जी ,   हौसला बढ़ाने  के लिए हार्दिक  धन्यवाद 

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