फिर वही गीत दुहराओ प्रिय
मन की सूखी धरती पर
कुछ बूंद प्रेम जल छलकाओ प्रिय
वीरान हो चला है हृदय
कुछ प्रेम पुष खिलाओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ....................
भग्न हदय सुप्त मन प्राण
अभिशापित सा हो चला जीवन
गहराती धुंध के बादल
कुछ रशमियां बिखराओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ...............अन्नपूर्णा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुरु जी आपका हार्दिक आभार । आपसे यूं ही प्रेरणा मिलती रहे ।
प्रणय का सात्विक निवेदन मुखर हुआ है, सादर धन्यवाद तथा बधाइयाँ.
सादर
प्रणय का सात्विक निवेदन मुखर हुआ है. सादर बधाइयाँ.
आदरणीया शुभांगना जी आपका हार्दिक आभार ।
भग्न हदय सुप्त मन प्राण
अभिशापित सा हो चला जीवन
गहराती धुंध के बादल
कुछ रशमियां बिखराओ प्रिय, सुंदर भावाभिव्यक्ति
आदरणनीया महिमा जी एवं आ० अभि जी आपका हार्दिक आभार .
सुन्दर शब्द संजोये हैं आपने … बहुत ख़ूब
भग्न हदय सुप्त मन प्राण
अभिशापित सा हो चला जीवन
गहराती धुंध के बादल
कुछ रशमियां बिखराओ प्रिय
फिर वही गीत दुहराओ......... बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत-२ बधाई आपको
आ० आशुतोष मिश्रा जी , एवं आ० लक्ष्मण प्रसाद जी आपका हार्दिक आभार ।
सुन्दर प्रणय गीत के लिए बधाई आदरणीया अनुपमा वाजपेयी जी
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