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छोटी बहर की ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम

       1222, 1222

परेशानी बढ़ाता है,

सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,

हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,

नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,

कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,

दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,

सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,

नसीबा ही मिलाता है,

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,

कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,

यही जीवन मिटाता है...

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 1:08pm

आदरणीया कुंती जी ग़ज़ल की सराहना हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 11:55am

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,

कभी जन्नत दिखाता है, वाह!!

सभी शेअर उम्दा है !! 

Comment by Ketan Parmar on July 19, 2013 at 11:52am

गुजरती रात है तन्हा,

सवेरे तक जगाता है,

Karamati sher mitr badhai sweekare

Comment by Aarti Sharma on July 18, 2013 at 9:51pm

कभी छलनी जिगर कर दे,

कभी मलहम लगाता है,....

वाह बहुत खूब अरुण जी..बधाई स्वीकारें.

Comment by Sarita Bhatia on July 18, 2013 at 8:04pm

waah arun bahut bahut badhayi

,aap to vaise hi mahir ho gaye ho gajal ke 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:19pm

"हजारों मुश्किलें देकर,

दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,

सवेरे तक जगाता है,"...वाह ! बहुत खूब..आदरणीय. अरुण जी ,उम्दा गज़ल पर दाद कुबूल कीजिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 18, 2013 at 5:54pm

प्रिय अनुज अरुण शर्मा जी 

छोटी बह्र पर बहुत खूबसूरत गज़ल.....हर शेर स्वतः ही हामी भरवाता हुआ है , वाह 

हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:52pm

अहहा! वाह! आप उस्ताद हो गए! बधाई आपको! 

Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 1:02pm

आदरणीय अरुण जी गजल तो बहुत बढ़िया है , किन्तु मुझे बहर के विषय मे थोड़ा जानकारी दें । मै इस विषय मे कोरा कागज़ जैसी हूँ ।

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 1:01pm

बहुत सुंदर गजल.....

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,

कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,

यही जीवन मिटाता है.

कृपया ध्यान दे...

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