For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ मुक्तक (उत्तराखंड त्रासदी पर)

(1)

चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे

सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे

(2).

तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो

अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी

ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी

ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी

(3).

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए

ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए

..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको

अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए

(मौलिक और अप्रकाशित)

.... copyright with अजय शर्मा 09415461125

Views: 1006

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 8:21pm

सुन्दर विचारों से पिरोये हुए मुक्तक पे बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी!

तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो

अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी

ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी

ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी ,,

                                                                जहाँ तक मेरी जानकारी है, मुक्तक  में पहला पद, तीसरा पद, और आखिरी पद  सम तुकांत होते है,, इस नियम के तहत शायद ये मुक्तक मानक पे खरा नही है,,

क्या कोई और भी     नियम है ऐसा?? मंच से जिज्ञासा रखती हूँ 

सादर 'वेदिका'  

 

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:18pm

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए

ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए

..... बद-दुया है ये , की , कहे वक़्त की ज़रूरत इसको

अब कुछ अरसा ऐसा हो ये दरिया बर्फ मे ढल जाए.........अजय भाई  मैंने सिर्फ भाव पर प्रकाश डाला है  मुक्तक को उसी की शक्ल में अच्छी लगती है.टाइपिंग की अशुद्दियों पर ध्यान दीजिएगा.

सादर

कुंती

Comment by ram shiromani pathak on July 5, 2013 at 8:09pm

बहुत सुन्दर भाव है आपके भाई अजय साहब ///हार्दिक बधाई आपको

(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी/// भाई साहब  इसे एक बार देख ले///

सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल जाए
ai खुदा कोई धूप ऐसी भेज की ये पानी जल जाए// कुछ नया देखने को मिला //हिन्दी के साथ इंग्लिश //शायद आपने हिंगलिश में लिखने की कोशिस की है ///वाह नया प्रयोग //

(मौलिक और अप्रकाशित) ये तो ठीक है //
.... copyright with अजय शर्मा ०९४१५४६११२५///ये क्या है भाई साहब ///

Comment by coontee mukerji on July 5, 2013 at 8:01pm

चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे

सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे.................जब तक चर्चाएँ समाप्त होंगी तब तक न जाने कितने लोग कालकलवित हो जाऐंगे

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 8:00pm

आदरणीय बहुत अच्छा प्रयास है आपका! आपको ढेरों बधाई!

एक बात इस मंच को सम्बोधित करके कहना चाहता हूं कि क्या मुक्तक में तुकांत का ध्यान नहीं रखा जाता?

इस मंच के सुधीजन इस विषय पर मुझे मार्गदर्शन प्रदान करें। जो इस रचना पर अपनी टिप्पणी दे चुके हैं उनसे भी मेरा आग्रह है कि कृपया अपनी कीमती राय एक बार फिर दें।

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 6:16pm

उत्तरा खंड की इस त्रासदी पर बहुत सार्थक मुक्तक रचे है अजय जी बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2013 at 11:33am

बहुत प्रभाव पूर्ण मुक्तक रचे है आपने त्रासदी पर, हार्दिक बधाई श्री अजय शर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2013 at 9:46am

उत्तराखंड त्रासदी के विविध पहलुओं पर बहुत सुन्दर यथार्थ मुक्तक लिखे हैं आ० अजय जी 

शुभकामनाएं 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2013 at 9:43am

आ0 अजय जी,    सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।   सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 5, 2013 at 8:12am

"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं

बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे...............भयानक त्रासदियाँ तो इनकी लाटरियाँ ही हैं. 

आदरणीय अजय शर्मा जी सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service