For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,

आज प्रलय हुंकार करूँ,,,,,,
=================
सच ! तू ही अब सब कुछ बतला,मैं क्यॊं ्न तुझसॆ प्यार करूँ ॥

तॆरी कटुता कॊ जग मॆं, कॊई शमन नहीं कर पाता,
तॆरी ग्रीवा मॆं बाहॆं डाल, कॊई भ्रमण नहीं कर पाता,
भाग रहा जग दूर दूर, क्यॊं तुझसॆ कुछ तॊ बतला,
दुविधा का विषय यही, है जग बदला या तू बदला,

दुत्कार रहा सारा जग तुझकॊ,मैं क्यॊं न जग सॆ ्तक़रार करूँ ॥१॥
सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

फिर तॆरॆ हॊतॆ जग मॆं, कैसॆ असत्य का राज्य हुआ,
तॆरी कुटिया टूटी-फूटी,असत्य अचल साम्राज्य हुआ,
सब हुयॆ उपासक उस कॆ, तॆरा नाम नहीं लॆनॆ वाला,
आज झूठ कॆ बाजारॊं मॆं, तॆरा दाम नहीं दॆनॆ वाला,

यह जग तेरा अपमान करॆ जब, मैं क्यॊं न तेरा सत्कार करूँ ॥२॥
सच, तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तॆरी परछाई सॆ भी दूर, भागतॆ दॆखॆ मैनॆं लॊग यहाँ,
तॆरॆ कारण लाखॊं भूँख, फांकतॆ दॆखॆ मैनॆं लॊग यहाँ,
असहाय पड़ा तू भूखा-प्यासा,दॆख रहा हूँ तॆरी काया,
महा-विलास की चौखट पर,नर्तन करती झूँठी माया,

संज्ञा-हीन ऋचायॆं तॆरी कैसॆ, बन मूक बधिर स्वीकार करूँ ॥३॥
सच,तू सच मॆं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

हॆ प्रबल प्रतापी सत्य-दॆव, है अम्बर सॆ ऊँचा रूप तॆरा,
सप्त-सिन्धु सॆ भी गहरा, दिनकर सॆ तॆज स्वरूप तॆरा,
फिर क्यॊं अँधियारॆ मॆं अपना,अस्तित्व छुपायॆ जीता है,
मॆरी तरह हलाहल जग का, तू मौन व्रती बन पीता है,

झंकृत कर मन कॆ तार-तार, मैं सदा सत्य की हुंकार करूँ ॥४॥
सच,तू ही अब,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कवि - "राज बुन्दॆली"
०१/०७/२०१३
पूर्णत: मौलिक व अप्रकाशित रचना

Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 2, 2013 at 4:25pm
आदरणीय..राज बुंदेली जी, शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2013 at 4:08pm

सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बढ़ायी 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2013 at 2:14pm

भाई ,,Harish Upreti "Karan" ,, जी,,,, वह रचना का शुद्ध रूप नही था,,,,,आदरणीय Saurabh Pandey, जी ने संकेत दिया,,,और उस अनुरूप कुछ बदलाव किया है,,,अगर उचित हो तो आशीर्वाद दीजिये,,,,अगर कहीं कमी हो तो सुझाव भी दीजियेगा,,,कृपा होगी,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2013 at 2:12pm

भाई ,,,वीनस केसरी, जी,,,, वह रचना का शुद्ध रूप नही था,,,,,आदरणीय Saurabh Pandey, जी ने संकेत दिया,,,और उस अनुरूप कुछ बदलाव किया है,,,अगर उचित हो तो आशीर्वाद दीजिये,,,,अगर कहीं कमी हो तो सुझाव भी दीजियेगा,,,कृपा होगी,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 2, 2013 at 2:08pm

आदरणीय,,, Saurabh Pandey, जी सादर प्रणाम,,,,,आपकॆ संकॆत को मैं समझ गया हूं और सिरोधार्य करते हुयॆ कुछ सुधार की कोशिश की है,,,,कृपया पुन: अवलोकन करने की यथोचित मार्ग-दर्शन देने की कृपा जरूर करियेगा,,,, सादर नमन आपको,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 5:16am

भाव और ओज से ओतप्रोत इस कविता के लिए बधाई, आदरणीय राज साहब.

वैसे सही कहूँ तो मुझे इस गीत का मुखड़ा ही पसंद नहीं आया. सच से ये पूछना कि वो सच में सच-सच बताए कि उससे क्यों प्यार किया जाये ! यह प्रश्न सच की संज्ञा को ही नकारना हुआ है. सच तो है ही सच कहने के लिए. वो जो कहेगा सच ही कहेगा. फिर पंक्ति में ऐसे इम्फैसिस की आवश्यकता क्यों ? अलबत्ता मंच पर चमत्कार के लिहाज से या जम जाने के लिए यह पंक्ति बढिया हो सकती है.

आगे क्या कहूँ? संबवतः आपकी यह कविता अन्य साइटों पर अपलोड हुई तमाम वाहवाहियों से अबतक उभ-चुभ हो रही होगी. सो मुझसे भी बधाई स्वीकारें.

शुभम्

Comment by वीनस केसरी on July 2, 2013 at 2:03am

वाह वा 
अति सुन्दर 

हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by Harish Upreti "Karan" on July 1, 2013 at 11:35pm

वाह मैं आज प्रलय हुँकार भरूं........सुन्दर.......बधाई.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service