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एक लॊकगीत,,,,

=================

चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,

गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,

अम्मा  बाबू  कॆ बदना  की,

मैं किलकारी थी अँगना की,

तुलसी छॊड़ भई सजना की,

रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,

ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,

,

वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,

साथ साथ मॆरॆ सब खॆलीं,

अमियाँ इमली गुड़ की डॆली,

भूल गयॆ सब खॆल खिलौनॆ,

भूलीं सब ऋतु मस्तानी रॆ !!२!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,

पढ़ी-लिखी जॊ मैं भी हॊती,

बॆटॊं जैसा सम्मान सँजॊती,

सिसक रसॊई मॆं ना रॊती,

साहब की कुर्सी पर बैठी,

मैं लिखती नई कहानी रॆ !!३!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,

हम कॊ मार रही बॆ-कारी,

ना ही सुविधा है सरकारी,

राशन चाट रहॆ अधिकारी,

जीना दुर्लभ हुआ यहाँ पर,

"राज" करॆ निगरानी रॆ !!४!! हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,

कवि - "राज बुन्दॆली"

१६/०६/२०१३

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,

Views: 829

Comment

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Comment by बृजेश नीरज on June 19, 2013 at 10:52pm

बहुत सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by ram shiromani pathak on June 19, 2013 at 10:06pm

बहुत ही खूबसूरत चित्रण करता लोकगीत आ0 बुन्देली जी,हार्दिक बधाई

Comment by Sumit Naithani on June 18, 2013 at 4:13pm

बहुत ही खूबसूरत लोकगीत प्रस्तुत किया आपने.......हार्दिक बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 2:33pm

अतिसुन्दर प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  

Comment by Meena Pathak on June 18, 2013 at 1:32pm

बहुत सुन्दर ...दिल खुश हो गया ...बहुत बहुत बधाई 

Comment by mrs manjari pandey on June 18, 2013 at 11:56am

nnलोकगीत 

आदरणीय  राज बुन्देली जी लोकगीत की सरलता सरसता मन को भा गयी  बहुत बहुत बधाई

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 18, 2013 at 10:40am
coontee mukerji जी,,,बहुत बहुत आभार आपका,,,,धन्यवाद,,
Comment by D P Mathur on June 18, 2013 at 7:33am

अम्मा बाबू के बदना की,
मैं किलकारी थी अँगना की,
मन के भावों का सही चित्रण करता लोकगीत,
अति सुन्दर !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2013 at 10:04pm

आ0 बुन्देली सर जी,
पढ़ी.लिखी जॊ मैं भी हॊती,
बॆटॊं जैसा सम्मान सँजॊती,
सिसक रसॊई मॆं ना रॊती,
साहब की कुर्सी पर बैठी,
मैं लिखती नई कहानी रॆ !!३!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रे....
हम कॊ मार रही बॆ.कारी,
ना ही सुविधा है सरकारी,
राशन चाट रहॆ अधिकारी,
जीना दुर्लभ हुआ यहाँ पर,
ष्राजष् करॆ निगरानी रॆ !!४!! हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ...
लाजवाब, अतीव, अप्रतिम और अतिशय सुन्दर लोक गीत। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2013 at 9:43pm
आदरणीय..बहुत ही खूबसूरत लोकगीत प्रस्तुत किया आपने, बहुत बहुत हार्दिक..शुभकामनाऐं

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