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जल से भरा सरोवर |

एक मीन गंदा करती है  , पर सारे होते बदनाम | 
सच्चाई कोई ना जानें , लग जाता  सब पर इलजाम |
नकली ही बन जाता असली ,  झूम कर  घूमे खुलेआम |
पुलिस वाले ढूढते रहते , असली का ना आये नाम | 
खुदवाया जब एक सरोवर , दूध भरेगें किया विचार | 
सब एक घडा दूध डाल दो  , सन्देश  भेजा  बेकरार  |  
रात में भर जाये सरोवर , सब को होगा हर्ष अपार | 
विकल हुए सब राजा का सुन , सोच! जाये दूध बेकार |
सबके पास गाय भैस लगे , चले दूध लेकर  तैयार |
रात अंधेरी चाँद गायब ,  सिर पर रखा घडा मन मार | 
मेहनत से ये दूध आये , ना डालेगें किया विचार |
सब लोग ही दूध डालेगें , छिपे  नीर घडा एक बार |
जल से भरा घडा ले डाला , कोई ना देखा संस्कार  |
सब के मन में बात समाई ,  सब ने डाला जल की धार  |
जल से भरा सरोवर देखा , सोचा मेरे  मन की हार  |
राजा देखा सब  कैसे  है , सब का कैसे एक  विचार | 
डरते डरते सब ने डाला , निरीक्षण न  किया एक बार | 
पहले जान लेता हकीक़त , कितने सच हैं लोग हमार  |
हमने किया सब पर भरोसा , कैसा  सिला मिला इस  बार |
वर्मा  पक्षी खेत खा जाये ,  कहाँ गया था वो  रखवार | 
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on June 8, 2013 at 1:43pm

आदरणीय प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें किन्तु शिल्प और कसावट पर अधिक ध्यान दें आप ओ बी ओ परिवार में काफी समय से सक्रिय हैं आपसे उम्मीद अधिक है थोडा और श्रम बस फिर देखिये आनंद आने लगागा आपको भी और पाठकों भी. सादर

Comment by शुभांगना सिद्धि on June 8, 2013 at 2:29am

सुंदर कथा कविता रूप में

Comment by Vinita Shukla on June 7, 2013 at 7:04pm

सुंदर सन्देश देती हुई कथा. हार्दिक साधुवाद.

Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 4:30pm

जी ,

आपका बहुत बहुत आभार |

सादर ,

 

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 3:42pm
कहीं कही गेयता बाधित है ...आल्हा की धुन पे गीत नही गाया जा प् रहा 
सब ने डाला जल की धार // जल की धार स्त्रीलिंग है 'डाली जल की धार 
 सन्देश  भेजा  बेकरार  // बेकरार का इस पंक्ति में योग समझ  नही आया 
हमने किया सब पर भरोसा // हमने सब पर किया भरोसा ....गेयता के हिसाब से शब्दों का स्थान बदला है देख लीजिये 
 
सुंदर कथा ...लेखन कर्म पर बधाई 
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 3:23pm

आदरणीय गेयता प्रभावित है। इसे फिर देख लें। सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on June 7, 2013 at 2:37pm

आदरणीय ,

हमने आल्हा या वीर छंद में लिखा है , जिसमे ३१ मात्रा , १६ , १५ पर यति और अंत में   एक गुरु एक लघु होता है |

सादर ,

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 2:27pm

आदरणीय आपकी पूर्व रचना भी इसी स्वरूप में थी। आपसे अनुरोध है कि यह स्पष्ट करें कि यह किस विधा में लिखा है आपने। यह निवेदन मैंने आपसे आपकी पूर्व रचना मेहनत पर भी किया था। आप रचना पर प्राप्त टिप्पणियों को या तो महत्व नहीं देते या फिर उनका प्रत्युत्तर देना उचित नहीं समझते। आशा है कि आप रचना पर प्राप्त टिप्पणियों को गम्भीरता से लेंगे।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 9:35am

आदरणीय, इसी कथ्य को किसी शिल्प में बाँधे तो उसे कहते, तो कविता होती. शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 7, 2013 at 9:02am

सीख देते किस्से के आधार पर रची सुन्दर रचना के लौए हार्दिक बधाई श्री स्याम नारायण वर्मा जी  

कृपया ध्यान दे...

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