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साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी  रीती है मन की गागर 

नदिया  की तृष्णा  हरे कैसे लवणित  बूँद -बूँद सागर 

 अवगुंठित भाव होकर अधीर 

गीतों में निरी  भरते हैं  पीर

विरह कंटक चुभ हिय  घाव करें  

पीड़ा अँखियन  कर जायँ उजागर

साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी  रीती है  मन की गागर 

नदिया  की तृष्णा  हरे कैसे लवणित  बूँद -बूँद सागर 

सिसकती गलियाँ पनघट  रोता  

नीर जमुना के नैना  भिगोता   ,

श्वास मरीचिका में उलझाये

छल-बल से मोरा नटवर नागर

साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी  रीती है  मन की गागर 

नदिया  की तृष्णा  हरे कैसे लवणित  बूँद -बूँद सागर 

संत्रस्त  सम्मूढ़ कुंदन किसलय 

तज  कदम्ब कि  डार धूरि में विलय

कर  कुंठित कर्ण भरमाय रहा  

बाँसुरिया राग तिलस्मी आगर

साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी रीती है मन की गागर 

नदिया  की तृष्णा  हरे कैसे लवणित  बूँद -बूँद सागर 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 2, 2013 at 10:01am

साथी बिन मन की गागर रीती है, सुन्दर मन के उदगार की काव्य विधा में यह अनोखी रीती है |

और सच पुर्छों तो इसमें छिपी अपने मन की अनुभूति जैसी आप बीती है | भावो को कागर पर उढेल

कर मन को सुन्तुष्टि देने की यह अच्छी निति है | सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी 

Comment by vijay nikore on June 2, 2013 at 1:48am

मनभावन चयन, राज जी।

साधुवाद।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2013 at 10:39pm

ब्रजेश नीरव जी आपको ये प्रयास रुचिकर लगा बहुत- बहुत हार्दिक आभार|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2013 at 10:37pm

प्रिय प्राची आप सही कह रही हैं मात्रा गणना में भी चूक हुई है बहुत जल्दी इस गीत को और वक़्त देकर दुरुस्त करने का प्रयास करुँगी ,हार्दिक आभार|

Comment by बृजेश नीरज on June 1, 2013 at 10:33pm

आदरणीया बहुत ही सुंदर प्रयास है आपका! आपको ढेरों बधाई!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 1, 2013 at 10:23pm

आदरणीया राजेश जी 

गीत विधा पर सुन्दर प्रयास..पर गेयता कहीं कहीं बाधित है.

 अवगुंठित भाव होकर अधीर 
गीतों में नित भरते हैं  पीर

विरह कंटक चुभ हिय  घाव करें  

अँखियाँ निज पीर करें उजागर    ...............बहुत मर्मस्पर्शी भाव हैं 

साथी रे बिन प्रीत तुम्हारी  रीती है  मन की गागर 

आप मात्रा गणना को हर पंक्ति में एक समान करने का प्रयत्न कीजिये और  शब्द समूहों में थोड़ा सा स्थान परिवर्तन करिये ( सम के तुरंत बाद सम शब्द और विषम के साथ विषम मात्रिक शब्द) फिर देखिये.

संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2013 at 10:17pm

हार्दिक आभार किशन कुमार जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2013 at 8:25pm

जी सादर आभार :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 1, 2013 at 7:41pm

//गीतों पर प्रयास कर ही रही हूँ आज कल//

वाह ! .. पुनः शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 1, 2013 at 7:30pm

आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार, आपका  परामर्श सर आँखों पर ,गीतों पर प्रयास कर ही रही हूँ आज कल |

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