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वो खुदाया पास मेरे आ रही है (ग़ज़ल)

बहर --रमल मुसद्दस सालिम 

2122   2122   2122

 

उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है 

वो खुदाया पास मेरे आ  रही है 

 

राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना  

जिन्दगी ये सोचती सी  जा रही है 

 

क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये 

रेत  में बुलबुल नहा कर  जा रही है

 

जानते हैं  भाग्य अपना पीत  पत्ते

फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है  

 

खुल गयीं  हैं जुल्फ उसकी आज शायद 

वादियों में जो घटा सी  छा रही है 

 

बादलों में दूर इक परछाई आकर  

ख़ास कर क्यों  मुस्कुराती जा रही है 

 

क्या खबर किस  रोज़  सज जाएगा मंडप 

सोच दुल्हन पैरहन    सिलवा रही है  

 

लौट  जाएगा परिंदा नीड़  में फिर 

सोच कर क्यों झुरझुरी सी आ रही है 

 

जो अधूरे काम अब  वो पूर्ण कर ले 

'राज' फिर ये जिंदगानी जा रही  है  

************************************

(मौलिक अप्रकाशित )

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 9, 2013 at 9:29am

प्रिय सखी डॉ  नूतन जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 9, 2013 at 4:29am

राजेश जी बहुत सुन्दर गज़ल... शायद यह फेसबुक मे पढ़ी थी वहाँ टिप्पणी की हैं इस पर ... राजेश जी पहले मैंने गज़ल पर प्रयास किये थे, किन्तु आज गज़ल पर काम करना भूल ही गयी हूँ .. बस गेयता देखती हूँ सुन्दर लगी आपकी गज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2013 at 9:48pm

आदरणीय DPमाथुर जी ग़ज़ल पर शिरकत करने और दिल से सराहने  पर तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by D P Mathur on June 8, 2013 at 9:21pm

हिन्दी गजल सुनकर अच्छी लगती थी, लेकिन आज जब दिल से इस गजल को पढ़ा तो लगा कि गजल पढ़ने में भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
क्या किसी तूफान का संकेत है ये,
रेत में बुलबुल नहा कर जा रही है !
अच्छी गजल - डी पी माथुर


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Comment by rajesh kumari on June 7, 2013 at 7:15pm

राजेश कुमार झा जी ग़ज़ल पर आपकी सराहना पाकर हर्षित हूँ तहे दिल से आभार आपका 

Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 2:52pm

आपको बधाई इस रचना पर । तकनीकी चीजें गज़ल की मुझे नहीं आती पर पढ़कर बड़ा अच्‍छा लगा, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 2:52pm

आपको बधाई इस रचना पर । तकनीकी चीजें गज़ल की मुझे नहीं आती पर पढ़कर बड़ा अच्‍छा लगा, सादर


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Comment by rajesh kumari on June 6, 2013 at 10:46pm

ब्रजेश नीरज जी ग़ज़ल आपकी सराहना पाकर धन्य  हुई तहे दिल से आभार आपका 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:42pm

आदरणीया बहुत सुन्दर! हर शेर कहीं दूर तक झकझोरता है। ढेरों बधाई स्वीकार करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2013 at 10:05pm

अब आश्वस्त हुई आदरणीय सौरभ जी हार्दिक आभार आपका 

कृपया ध्यान दे...

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