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ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,

आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,

बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,

चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on April 29, 2013 at 4:22pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by akhilesh mishra on April 29, 2013 at 3:18pm

भाई सालिम जी बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए ।

Comment by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 2:01pm

अच्‍छी गजल के लिए हमारी शुभकामनाएं, आपसे और शानदार गजल की अपेक्षा है

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 29, 2013 at 7:37am

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,...............बस झूठ का ही बोलबाला है.

सुन्दर गजल कही है भाई अरुण जी बहुत बहुत दाद कुबुलें.

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 11:14pm

आज ग़ज़ल को जिस तेवर के साथ जन-जन की आवाज बनना है और बन भी रही है, उसका शानदार नमूना पेश करती आपकी यह ग़ज़ल काबिले गौर और काबिले तारीफ है

खास कर ये शेर तो सटाक से आ कर सीने पर लगा है

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

इस ग़ज़ल के लिए और खास कर इस तेवर के लिए आपको ढेरो दाद पेश करता हूँ

समय की मांग यही है कि इस तेवर की ग़ज़लें कहते रहिये
शुभकामनाएं

Comment by ajay sharma on April 28, 2013 at 11:14pm

wah wah wah 

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

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