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गजल : कितनी भला कटुता लिखें

भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?

नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।  

 

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।

 

रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,

अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।

 

पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,

फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।

 

पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा

खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।

 

हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली,

डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।

 

कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,

हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

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Comment by विजय मिश्र on May 16, 2013 at 4:40pm
हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली,
डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें। --- आपके आक्रोश को मेरा प्रणाम , ईश्वर समाज को कुंभीपाक होने से बचायें .
Comment by LOON KARAN CHHAJER on May 15, 2013 at 8:13pm

कल्पना जी
आपने नाम सही लिखा है .
धन्यवाद की आवश्यकता नहीं . आपने पसंद किया इसके लिए शुक्रिया .

Comment by कल्पना रामानी on May 15, 2013 at 2:29pm

आ॰ लूण करण जी, मेरा ई मेल...

kalpanasramani@gmail.com

Comment by कल्पना रामानी on May 15, 2013 at 2:26pm

LOON KARAN CHHAJER जी, हार्दिक धन्यवाद...

आपका नाम हिंदी में क्या लिखा जाए, समझ में नहीं आया।

सादर

Comment by कल्पना रामानी on May 15, 2013 at 2:22pm

पूनम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका...

Comment by Poonam Matia on May 13, 2013 at 2:28am

नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,

न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।/ ग़ज़ल नहीं ये समाजिक जाग्रति 

के लिए मशाल हैं ......बहुत ही उम्दा 

Comment by LOON KARAN CHHAJER on May 12, 2013 at 2:10pm

कल्पना जी
आपकी  गजल  गजल " कितनी भला कटुता लिखें " को अनेक पाठक पढ़ें इसलिए मैं इसको मेरे अखबार थार एक्सप्रेस में प्रकाशित करना चाहता हूँ . आशा है आप अपना ईमेल एड्रेस भेजेंगी तो अखबार की पीडीऍफ़  फायल भेज सकूँ.
धन्यवाद
लूण करण छाजेड

Comment by कल्पना रामानी on May 9, 2013 at 10:35pm

आ॰ कुन्दन कुमार जी, गजल की इतनी प्रशंसा से मन बहुत हर्षित हुआ। आपका हृदय से आभार...

Comment by Kundan Kumar Singh on May 9, 2013 at 7:51pm

आपकी शब्द शक्ति लाजवाब है। हिन्दी शब्दों की बहुल्यता से यह गजल और भी खूबसूरत हो गई है। वर्तमान परिवेश को दिग्दर्शित करती यह गजल हृदय की संवेदनाओं को उद्वेलित करती है। हार्दिक बधाई इस अनुपम रचना के लिए।

Comment by कल्पना रामानी on May 9, 2013 at 9:23am

आ॰ गणेश जी इस रचना के सृजन का पूरा श्रेय आपकी कविता को ही जाता है, कविता के गहरे भावपूर्ण शब्द अभी तक मेरे मन गूंज रहे है, जिनसे उत्पन्न आक्रोश से इस रचना का जन्म हुआ। सिर्फ एक घंटे में रची गई यह गजल जब तक साझा नहीं की मुझे चैन नहीं आ रहा था, पुरस्कार या सम्मान का तो मुझे कोई अनुमान ही नहीं था,  आपको भी 'मर्द' जैसी उच्चकोटि की रचना के लिए पुनः बधाई और हार्दिक धन्यवाद...

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