For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द में आपने कमी कर दी
अपनी यादें जो अजनबी कर दी ।
 
 
आँख भर इश्क का समंदर था
रूठकर कैसी तिश्नगी कर दी ।
 
 
मामला घर में ही सुलझ जाता
बात छोटी सी थी, बड़ी कर दी ।
 
 
फैसला जब दिया तो मक़्तल में
जान आफ़त में थी, बरी कर दी ।
 
 
और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें
नाम तेरे ये जिंदगी कर दी ।

Views: 932

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on July 1, 2013 at 9:56pm

क्या बात है स्नेही आशीष जी! 

बेहतरीन और संजीदा गजल पे बहुत सारी बधाई!  

और क्या देंगे मुफलिसी में तुम्हें

नाम तेरे ये जिंदगी कर दी ।

आखिरी शेअर ने तो कमाल की छाप छोड़ी है !!

Comment by Sushant Jain 'Ankur' on July 1, 2013 at 9:30pm

Aye haye .. Akhiri sher .. bahut hi khoob.

 

~ Sushant Jain 'Ankur'

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 18, 2013 at 10:44pm

आदरणीय Saurabh Pandey सर, आपका हर लफ़्ज हौसला-अफजाई करता है ।
तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ।  :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 12:20am

भाई आशीषजी, आपने वाकई कमाल किया है. मतले ने जिस आसानी से असीम को ससीम किया है वह आपकी रचनाधर्मिता को स्वर दे रहा है.

इसी तरह मामला घर में ही  वाला शेर बन पड़ा है. लेकिन कमाल किया है आखिरी शेर ने.

बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 10, 2013 at 10:38pm
Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 8:49am

सुन्दर गजल आदरणीय आशीष जी. बधाई कुबुलें.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 9, 2013 at 8:31pm

विवेक मिश्र जी,

बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) जी,

Tilak Raj Kapoor जी

Rajesh Kumar Jha जी

ग़ज़ल पसंद करने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 9, 2013 at 7:46pm

सरल शब्दों में बड़ी बात! बधाई आ० आशीष जी..!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 9, 2013 at 7:44pm
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 9, 2013 at 7:40pm

बहुत-बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service