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आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर  हँसते हैं आँसू।।
ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,
ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,
तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,
क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,
यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,
इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है मुश्किल,
तोड़कर नयनों का बांध छलक पड़ते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
ग़म का ही साया नहीं होते ये आँसू,
ख़ुशी का हमसाया भी होते हैं ये आँसू,
तभी तो कभी पाकर ख़ुशी आँखों में मचलते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

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Comment by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 11:04am

आदरणीया सावित्री जी,

:अच्छे भाव लिए हुए रचना  हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on March 21, 2013 at 1:45am

savitri ji, ansoo par itni sundar abhiviaktee man ko choo gaya.mai aksar sochtee hoo agar insaan ke jeevan mei ansoo na hota to vaha kitna rookha aur nirass hota.

Comment by vijay nikore on March 21, 2013 at 1:16am

 

आदरणीया सावित्री जी:


आपकी कविता में भाव बह रहे हैं।


सादर और सस्नेह,

विजय

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