For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये

एक पुरानी ग़ज़ल....
शायद २००९ के अंत में या २०१० की शुरुआत में कही थी मगर ३ साल से मंज़रे आम पर आने से रह गयी...
इसको मित्रों से साझा न करने का कारण मैं खुद नहीं जान सका खैर ...
पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ............


अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये

शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये

जो ढो चुके हैं इल्म की गठरी, अदब की बोरियां
वह आ रहे हैं मंच पर बन कर विदूषक देखिये

जिनके सहारे जीत ली हारी हुई सब बाजियां
उस सत्य के बदले हुए प्रारूप भ्रामक देखिये

जब आप नें रोका नहीं खुद को पतन की राह पर
तो इस गिरावट के नतीजे भी भयानक देखिये

इक उम्र जो गंदी सियासत से लड़ा, लड़ता रहा
वह पा के गद्दी खुद बना है क्रूर शासक देखिये

किसने कहा था क्या विमोचन के समय, सब याद है
पर खा रही हैं वह किताबें, कब से दीमक देखिये

जनता के सेवक थे जो कल तक, आज राजा हो गए
अब उनकी ताकत देखिये उनके समर्थक देखिये

(बाहर-ए-रजज मुसम्मन सालिम)

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilansh on November 26, 2012 at 9:05am
किसने कहा था क्या विमोचन के समय, सब याद है
पर खा रही हैं वह किताबें, कब से दीमक देखिये

आदरणीय वीनस जी मुकम्मल ग़ज़ल के बहुत बधाई
Comment by ajay sharma on November 25, 2012 at 11:56pm

wah wah wah wah 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:24pm

दुनिया के बदलाव की कहानी कितने गज़ब दिखाती है 

जिन दिलों में मोहब्बत थी उनमें नफ़रत की महक देखिये 

Comment by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 11:19pm


Laxman Prasad Ladiwala ji
धन्यवाद कुछ और पुरानी ग़ज़लें हैं जो अभी तह साझा नहीं हुई हैं जल्द ही उनको भी पोस्ट करूँगा
आभार

Comment by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 11:19pm

मनोज कुमार सिंह 'मयंक' जी ग़ज़ल के प्रति आपकी विचार जान कर बेहद खुशी हुई

Comment by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 11:18pm

Saurabh Pandey ji
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया इस ग़ज़ल के प्रति आश्वस्त करती है

Comment by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 11:18pm

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA JI  तहे दिल से शुक्रिया


Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 6:17pm
आदरणीय वीनस केसरी जी आज ही मतले,रदीफ़ काफिया का मतलब समझ पाया था 
आपकी धुल झाड कर प्रस्तुत की गयी रचना का मतला (पहला शे अ र) ही बहुत सुन्दर 
है । आगे भी -
इक उम्र जो गंदी सियासत से लड़ा, लड़ता रहा
वह पा के गद्दी खुद बना है क्रूर शासक देखिये ---- नेताओ को कुर्सी मिलने पर यथार्थ में यही हो रहा है, बहुत खूब 
किसने कहा था क्या विमोचन के समय, सब याद है 
पर खा रही हैं वह किताबें, कब से दीमक देखिय--------------आज कल सार्वजानिक पुस्तकालय तक में यह हाल है, उम्दा 
जनता के सेवक थे जो कल तक, आज राजा हो गए 
अब उनकी ताकत देखिये उनके समर्थक देखिये --------------------बेहद उम्दा सामयिक परिस्थिति पर करार व्यंग 
हार्दिक बधाई स्वीकारे और अगर ऐसी गजले अभी और पड़ी हो तो उपलब्ध कराए 

 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on November 25, 2012 at 5:34pm

मैं तो स्तब्ध हो गया न..एकदम अवाक...जब झोंका चला तो फिर तबियत टन्न हो गई...गुरु शुद्ध संस्कृतनिष्ठ और खालिश उर्दू लहजे के पूर्ण समांगी मिश्रण ने गजल विधा में विचित्र प्रभाव उत्पन्न किया है...साथ ही गजल की स्वाभाविक श्रृंगारप्रियता के विपरीत प्रत्येक अशआर में राष्ट्र भाव सशक्त रूप से मुखरित हुआ है...बहुत बहुत बधाई..हर हर महादेव

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 25, 2012 at 5:24pm

ज़िन्दाबाद अश’आर से मन अँट-पट कर अश-अश कर चला है. कई दिनों से लगातार गज़लनुमाओं को सुनने के बाद आज सही रूप की, यानि, असली ग़ज़ल को सुनना मन को आनन्द दे गया है. मतले से लेकर आखिरी शेर तक वाह-वाह करता चला गया. हर शेर सटाक से पड़ता है. और उफ़्फ़ !

वीनसजी, आपकी इधर की कई-कई ग़ज़लों पर भारी पड़ रही है यह तथाकथित ’धूल फाँकती’ ग़ज़ल !  सही कहा गया है, अचार हो या ग़ज़ल, अग़र इत्मिनान से पगती चली जायँ तो वे रसदार से असरदार होती चली जाती हैं.

बहुत-बहुत बधाई इस खुल कर बोलती हुई ग़ज़ल पर.. भरपूर दाद लीजिये.. और मुग्ध होइये. बहुत खूब !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service