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(1)

(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित) 

सुंदरी सवैया

उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।

(2)

विषकुम्भम पयोमुखम

मत्तगयन्द सवैया


बाहर की तनु सुन्दरता मनभावन रूप दिखे मतवाला ।
साज सिँगार करे सगरो छल रूप धरे उजला पट-काला ।
मीठ विनीत बनावट की पर दंभ भरी बतिया मन काला ।
दूध दिखे मुख रूप सजे पर घोर भरा घट अन्दर हाला ।।

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Comment by रविकर on October 16, 2012 at 9:30am

बहुत बहुत आभार आदरणीय अजय जी ||

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:45pm

wah wah wah wah i have no words to comment ,,, really really worth praising 

Comment by रविकर on October 14, 2012 at 10:39pm

आभार आदरणीय बागी जी-


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2012 at 12:02pm

दोनों रचनाएँ बहुत ही उम्दा हैं, मलाला शीघ्र स्वस्थ हो , हम सब की दुआ है, क्योंकि ऐसी बेटियां रोज रोज पैदा नहीं होतीं | बधाई स्वीकार करें आदरणीय रविकर जी | 

Comment by रविकर on October 14, 2012 at 11:32am

बहुत बहुत आभार
आदरेया राजेश दीदी ||

Comment by रविकर on October 14, 2012 at 11:31am

बहुत बहुत आभार
आदरेया राजेश दीदी ||

Comment by रविकर on October 14, 2012 at 11:28am

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 14, 2012 at 7:32am

आपका हृदय से स्वागत है, आदरणीय रविकरजी. इन सुन्दर भावपगे शिल्पशुद्ध छंदों के लिये साधुवाद. आपको इन छंदों पर कहते हुए देख कर मन फूला नहीं समा रहा है. दोनों सवैये अलग-अलग विषयों और आयामों के साथ हैं लेकिन दोनों रचनाओं की तासीर, आदरणीय, मन-हृदय को मनोहारी रस से अभिसिंचित कर रही है. विशेषकर ’विषकुम्भकम् पयोमुखम्’ ..

बधाई-बधाई-बधाई.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 13, 2012 at 7:11pm

बहुत ही सुन्दर छंद रचे है रविकर जी और आपके ब्लॉग में आपके प्रकाशित  होने वाले खंड काव्य के अंश भी पढ़े हैं जो लाजबाब हैं हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:12pm

स्वागत है आदरणीय रविकर जी,

रचा गया खंडकाव्य प्रकाशित करने की  योजना निःसंकोच बनाएँ ! अशुद्धियों के भय की कोई बात नहीं आदरणीय क्योंकि एक असाधारण विद्वान होने के साथ-साथ आप अपने ओबीओ के सम्मानित सदस्य भी हैं यहाँ पर आपको अशुद्धियों के निराकरण हेतु वांछित सहयोग अवश्य मिलेगा ! सादर

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"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
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"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
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"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
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