For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आस की कश्तियाँ

मायूसियों ने आज फिर दस्तक दी
खयालो के बंद दरवाजो से निकल
मन के आँगन में बिखरने को
बेताब सी मायूसियाँ

लेकिन आस की एक लौ
जिससे रोशन है दिल की बस्तियाँ
मुस्कुरा के बोली बुझने ना देना मुझे
जीवन में आयेंगे कठोर थपेड़े
वक़्त की आंधियों में
हमने मिटती देखी हैं
इन थपेड़ो की गिरफ्त में कई हस्तियाँ
जिंदगी की उलझनों से बिफरती
भटकती सी राहो पर
डगमगाते कदमो से उठती-गिरती
बेबसी की लाचार सिसकियाँ
मन के सागर में उम्मीद के दीये सी
लहरों सी अठखेलियाँ करती
निरंतर बहती जाती है
आस की ये रोशन कश्तियाँ.........

Views: 1168

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 9:28am

किरणजी आपका स्वागत है आपके भाव व् जज्बातों को सलाम आपमें लिखने का हुनर है बाकी सौरभ जी जैसे प्रबुद्ध जन आपका मार्ग दर्शन करते रहेंगे इस मंच पर आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा बस अपना धैर्य और द्रढ़ता को बनाए रखिये शुभकामनाएं 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 14, 2012 at 8:53am

मायूसियाँ ने आज फिर ...     यह कैसी पंक्ति है, किरणजी ? सही वाक्य -- मायूसियों ने आज.....
दिल की बस्तियां....             बस्तियां  नहीं, सही शब्द बस्तियाँ है.
वक़्त की आंधियों तले,  ....    आंधियों  को आँधियाँ किया जाय. आँधियों तले का क्या अर्थ है ?
हमने मिटती देखी है.. .         देखी है के स्थान पर देखी हैं  होना चाहिये यह आपको भी मालूम है.
उम्मीद के दिए सी.. .    ....    दिया और दीया में फ़र्क़ है. यहाँ ग़ज़ल के बह्र की समस्या भी नहीं कि दीये के दी का वज़्न गिराया

                                      जाय. फिर दीया को दिया कहने की क्या विवशता है ?
लहरों सी अठखेलियाँ करती,
अविरल बहती जाती है
आस की ये रोशन सी कश्तियाँ....

इस वाक्यांश की मुलामियत पर मुग्ध हुआ जा सकता है. परन्तु, वाक्य का संयोजन कैसा हुआ है, इसे नज़रन्दाज़ किया जा सकता है क्या? अविरल बहना कश्तियों के लिये है अतः सही वाक्यांश बहती जाती हैं होगा. दूसरे, यहाँ रोशन सी कश्तियों  से क्या अभिप्राय है ? रोशन सी  का शाब्दिक अर्थ है जो रोशन तो लगे किन्तु वस्तुतः रोशन हो नहीं. यानि वाक्यांश का अर्थ हुआ -- आस की कस्तियाँ रोशन नहीं हैं, बल्कि आभासी मात्र हैं.  क्या मैं सही हूँ, किरण जी ? 

अब कृपया उपरोक्त सुझाव को संदर्भ लेकर रचना की पंक्तियों को देखें.

 

किरण आर्य जी, आपकी भावभरी पंक्तियों को देख कर मन मुग्ध होगया. और, प्रस्तुत रचना के परिप्रेक्ष्य में कहूँ तो आपकी संवेदनशील पंक्तियाँ भावनाओं से लबालब है. यह सत्य ही है, कि रचनाकार कोई हो यदि भावुक-शब्दों का संप्रेषण करता है तो उसकी पंक्तियाँ पाठकों को सुहाती ही हैं. लेकिन, किरण जी, रचना-प्रस्तुति भावुकता का संप्रेषण मात्र नहीं होता. होना भी नहीं चाहिये. प्रयुक्त उचित शब्द और उनका समझ भरा संयोजन ऐसे साधन हैं जो रचना को पठनीय ही नहीं आदरयोग्य बनाते हैं. ऐसे में रचना की भाषा के व्याकरण को परे नहीं हटाया जा सकता न ?

उपरोक्त संदर्भ के आलोक में हुआ किसी रचनाकार का प्रयास उसे भाव और विधा के मध्य संतुलन बनाना सिखाता है.  यहीं अपने मंच ओबीओ की सार्थकता है.

हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 3:21pm

आपका स्वागत है

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 3:14pm

आसा बंधाती सुन्दर रचना हेतु बधाई आदरणीया किरण जी ......

Comment by Kiran Arya on September 13, 2012 at 3:14pm

विशाल भाई मेरे बस आप सभी के स्नेह और मार्गदर्शन में सीख रही हूँ............:))

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 3:14pm

स्वागत है बंधुवर 

Comment by Kiran Arya on September 13, 2012 at 3:12pm

लक्षमण प्रसाद जी और मित्र अम्बरीश जी नमस्कार और आपके स्नेह एवं मार्गदर्शन के हम सदा अभिलाषी है

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 3:01pm

अविरल बहती -  आस की यह रोशन सी, यह  कश्तियाँ 

हार्दिक बधाई इस रचना के लिए किरण आर्य जी 
Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 2:56pm

प्रिय किरणजी,  इस भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें | सस्नेह

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 2:48pm

एक सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना.........एक अच्छा प्रयास है.......इसे जारी रखो किरण !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service