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एक राष्ट्र एक टोली, एक भाव एक बोली,
हिंदी से ही हो सकेगी, आप जान जाइए |

भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,
शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |

पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,
हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |

भारती की कामना है, शत्रु को जो थामना है,
भाई मेरे बंधु मेरे, हिंदी को बचाइए ||

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Comment by Albela Khatri on September 12, 2012 at 9:59pm

वाह वाह

भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,
शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |

 

बहुत खूब !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2012 at 8:45pm

शब्द प्रवाह और लय सच में बहुत अच्छा लगा घनाक्षरी में  हिंदी जैसे उत्कृष्ट विषय पर लिखा आपको बधाई बस जो सौरभ जी को बात खल रही है वो मुझे भी लग रहा है इसकी अंतिम पंक्ति में संशोधन करेंगे तो एक बेहतरीन घनाक्षरी का रूप ले लेगी 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 12, 2012 at 8:37pm

आदरणीय गुरुदेव......आपका आशीर्वाद एक स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के रूप में पा के बहुत खुशी हुई......साथ-साथ आपकी दी हुई एक और सीख जो हमेशा की तरह उपयोगी है.....आपका बहुत-बहुत आभार.......

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 8:26pm

भाई अजीतेन्दु जी, आपकी घनाक्षरी के शब्द-प्रवाह पर आपको हार्दिक बधाई. हिन्दी के प्रति आपकी भावनाओं को हम हृदय से महसूस करते हैं.

लेकिन एक बात : इतने अच्छे प्रारम्भ के आगे अंत दुर्बल दीख रहा है. काम-धाम छोड़  कर हिन्दी को बचाना समझ में नहीं आया. दूसरे, वीर औ महान स्वयं को कोई थोड़े न कहता है.

कथ्य की तार्किकता को भी लेकर चलना उचित होगा.

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