For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी 

                 *******

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 24, 2012 at 8:52am

//प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला//

आदरेया राजेश कुमारी जी कुकुभ छंद पर हाथ आजमाने के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें...........यह छंद रचने का बहुत अच्छा व भावपूर्ण प्रयास किया है आपने बस कहीं कहीं पर प्रवाह/गेयता में अवरोध सा आ रहा है अभ्यास से इसे निम्न प्रकार से सुधारा जा सकता है !

थके नहीं वो करें प्रदूषित ,भड़क गई उर में ज्वाला|

कूद पड़ी क्रोधित गंगा तब , सारा जल थल कर डाला||

पुनः बहुत-बहुत बधाई

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2012 at 8:12am

अशोक कुमार रक्तेला जी आपने रचना को सराहा मेरी लेखनी को संबल मिला हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 23, 2012 at 11:06pm

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

बिलकुल सही है प्रकृति के साथ छेड करने का फल सभी को भुगतना पड़ता है.बहुत सुन्दर कुकुभ छंद और आपकी पचासवीं रचना पर आपकी हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 9:56pm

सौरभ पाण्डेय जी आपने रचना को सराहा और मेरी अर्धशतकीय रचना पर टिपण्णी  दी मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 9:43pm

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते रहे आरी
खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी विपदा भारी

इस संवेदनशील रचना पर आपका सादर धन्यवाद, आदरणीत राजेशकुमारी जी.

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 8:15pm

आभार राजेश जी :-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 8:12pm

सीमा अग्रवाल जी बहुत ख़ुशी हुई आपको यहाँ देखकर आपकी प्रशंसा और शुभकामनाएं सर आँखों पर बहुत प्यारा दोहा भेंट किया आपने 

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 8:03pm

पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता बिलकुल उचित है एक दोहा समर्पित करूंगी उस स्थिति को जिसका बयान आपने अपनी रचना में किया है 
अनावृष्टि दिखती कहीं , और कहीं अतिवृष्टि 

संकेतों में ही अभी, समझाती है सृष्टि 

एक विचार शील रचना के लिए बधाई आदरणीय राजेश जी 
रचनाओं की  golden jubilee के लिए एक बार और बधाई शीघ्र ही आप शतक पूरा करे ऐसी शुभकामनाएं  प्रेषित करती हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 3:57pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 3:56pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार नवल जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
15 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service