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पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित दोहे

वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.

हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..

 

नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.  

कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..

 

जैविक खेती है भली, धरती हो आबाद. 

गोबर को अपनाइए, बचे रसायन खाद..

 

अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल.

छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल..

 

इसे आज ही त्यागिये, कभी न होती नष्ट.

पोलिथिन या प्लास्टिक, धरती को दे कष्ट..

 

कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त.

पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त..

 

दूध पिलाते जो हमें, वही बने आहार.

इनसे कैसी दुश्मनी, क्यों होता संहार..

--अम्बरीष श्रीवास्तव  

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 1, 2012 at 10:54am

आदरणीय सर जी
बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहे कहे हैं आपने
पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने की जरुरत है
आपने बखूबी जन साधारण तक ये सन्देश पहुचा के अपने दायित्व का निर्वहन किया है
आपको साधुवाद साधुवाद साधुवाद

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 1, 2012 at 10:41am

स्वागत है भ्राता अरुण, मिला आपका प्यार.

हुआ सार्थक श्रम सभी, भाई जी आभार..       सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2012 at 8:52am

आदरणीय अम्बरीश जी सादर प्रणाम, 

                  दोहों की रोचकता, मौलिकता के साथ ही वर्तमान समय में 
विशेष सन्देश देते दोहों पढ़ कर बड़ा सकूँ मिला | हमें पेड़ बचाओ, पानी 
बचाओ, बिजली बचाओ, मृदा में उर्वकता का संन्रक्षण, और इन सबकी 
तरह ही पानी, हवा, पेड़ जैसे प्राक्रतिक संसाधनों को प्रदुज्शन से बचने 
की महती जिम्मेदारी निभाने ही होगी | इस रचना हेतु हार्दिक बधाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 1, 2012 at 1:22am

जनहित में जारी किये, दोहे सब अनमोल

भाव  बड़े  गम्भीर  हैं  और  सरल हैं बोल |

आत्मसात करले  इसे ,  गर सारा संसार

पहले जैसा  खिल उठे ,  धरती का शृंगार |

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 31, 2012 at 11:54pm

स्वागत है आदरणीय उमाशंकर जी, आप द्वारा कहे गए इन बेशकीमती वचनों के लिए कोटि-कोटि आभार प्रेषित कर रहा हूँ ....आदरणीय यह सभी दोहे अपने राष्ट्र को ही समर्पित हैं ..आप जैसे भी चाहें इनका प्रयोग करें ... सादर ...जय ओ बी ओ , जय हिंद !

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 31, 2012 at 10:24pm

जय हो अम्बरीश जी आपने हमारे दिल के दर्द को पिरो दिया है सुन्दर दोहों में

आपकी भावनाओं के सामने नतमस्तक हूँ|आपने पर्यावरण सुरक्षा के लिए

इतना सुन्दर ढंग से दोहा रचा है मन गद गद हो गया| ये सार्थक रचना है इसका प्रभाव

हर पढने वाले के मन में जरुर होगा|मै तो इसमें अमल करने की कोशिस कर रहा हूँ और करता ही रहूंगा

मै सरकार में होता तो आज ही इस रचना को पर्यावरण सुरक्षा के लिए राष्ट्र को समर्पित कर देता

स्कूलों में इसे पाठ्यक्रम में सम्मलित करवा देता एक एक लाईन गहरी और सार्थकता लिए हुए है

एक एक लाईन  पर एक एक किताब का सार छिपा है

आदरणीय भाई बहुत बहुत बधाई साथ इतनी सुन्दर सार्थक पहल के लिए आभार

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 31, 2012 at 10:36am

आदरणीय सौरभ जी, दोहों की सराहना के लिए आपके प्रति आभार व्यक्त कर रहा हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 31, 2012 at 8:28am

अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल.

छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल..

बहुत ही सारगर्भित दोहे हैं. उपयोगिता के हिसाब भी और दिशा के हिसाब से भी. सादर धन्यवाद आदरणीय.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 29, 2012 at 5:37pm

डॉ० प्राची जी, आपका हार्दिक स्वागत है ! सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 29, 2012 at 5:36pm

भाई नीरज जी,

दोहे सुंदर आपके, मिला आपका प्यार.

सरस सजीली प्रतिक्रिया, भाईजी आभार..

कृपया ध्यान दे...

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